Monday 7 January 2013

“दहेज”


 
रात का समय था , आसमान साफ था । आसमान मे छिटके तारे और पूनम का चाँद , चारों ओर फैली चाँदनी बड़ा ही सुंदर समाँ बांध रहे थे । पूरा आसमान यूं लग रहा था जैसे किसी दुल्हन की ओढनी हो । लाला नरोत्तम दास की कोठी भी बिजली की रंगबिरंगी झालरों से सजी थी मानों एक दुल्हन की ओढनी ऊपर आसमान मे , और एक ओढनी नीचे धरती पर । क्यों न होता उस दिन कोई लड़की दुल्हन जो बनने वाली थी । कोठी का पूरा वातावरण चहल पहल से भरा था , लोग बड़ी बेचैनी से इधर उधर घूम रहे थे , लाला जी भी बेचैनी से बारात का इंतजार कर रहे थे । शहनाई की आवाज चारों ओर गुंजायमान हो रही थी और कानों मे मधुर रस घोल रही थी ।  परन्तु यही शहनाई की धुन शिखा के मन मे एक अनचाहा और अनदेखा डर पैदा कर रही थी , क्योंकि वही तो थी जो उस रात की हीरोइन थी और अपने हीरो का बेचैनी से इंतजार कर रही थी । लेकिन एक अजीब सा डर उसके कोमल मन को बार बार झकझोर देता था , पता नहीं क्यों वह खुद को इस विवाह के लिए तैयार नहीं कर पा रही थी । परंतु फिर भी वह अपने होने वाले पति का इंतजार बड़ी बेसब्री से कर रही थी । अचानक बाहर शोर गुल सुन कर शिखा की सहेलियाँ उसे छोड़ कर भाग गईं । बाहर बारात आ चुकी थी । लाला जी बड़े खुश नजर आ रहे थे आखिर उनकी मन की मुराद जो पूरी होने जा रही थी । इतने समय से जिस खुशी को वे तलाश रहे थे आज उनके द्वारे खड़ी थी । लाला पुरुषोत्तम दास का इकलौता बेटा उनका दामाद बनने जा रहा था । लाला पुरुषोत्तम दास नगर के नामी गिरामी लोगों मे से एक थे । वह उन्हे समधी के रूप मे मिल रहे थे , तो खुशी दूनी थी ही । शिखा की माँ दौड़ी गई बेटी के पास और झटपट वो सारी शिक्षाएं दुहरा डालीं जो इतने दिनों मे न जाने कितनी बार बेटी को समझा चुकी थी । फिर बाहर आकर द्वार पर आए दामाद का स्वागत करने लगीं । सखियों को भेज दिया कि वे शिखा को ले आयें ।
दूल्हा बना प्रशांत  किसी राजकुमार से कम नहीं लग रहा था । सासू माँ ने दौड़ कर नजर उतारी । सभी दूल्हे की तारीफ करते नहीं थक रहे थे । इधर शिखा एक अज्ञात डर के साथ जयमाला हांथ मे पकड़े चली आ रही थी मानो कोई स्वर्ग की अप्सरा सितारों मे सज के चली आ रही हो । धीरे धीरे मंडप की ओर कदम बढ़ाते हुए वह अपनी आगामी ज़िंदगी के सपने बुनने लगी । जब उसने मंडप पर कदम रखा तो प्रशांत उसे देखता ही रह गया , जो उसकी जीवन संगिनी बनने जा रही थी । एक क्षण को वह भूल गया कि वह कहाँ है और उसे क्या करना है । शिखा की सखियों ने उसे छेड़ा कि – “ क्या हुआ जीजा जी दुल्हन बदल गयी है क्या ?”
प्रशांत हड्बड़ा गया –“ नहीं नहीं ये वही है ।’’ और सभी ज़ोर से हंस पड़े । प्रशांत झेंप गया ,शिखा भी शर्मा गयी । जयमाला कार्यक्रम शुरू हुआ । शिखा की सहेलियों और प्रशान्त दोस्तों की छेड़खानियों के बीच दोनों ने एक दूसरे को जयमाला पहनाई । शिखा का डर कुछ कम हुआ लेकिन खत्म नहीं हुआ ।
सभी फेरों की तैयारी करने लगे । लाला नरोत्तम दास और उनकी पत्नी अपने समधी के पास गए और उन्हे फेरों के लिए आमंत्रित किया । समधी जी कुछ सोचते हुए उनके साथ चल दिये ,फिर धीरे से उन्होने शिखा कि माँ और बाबू जी कुछ कहा जिसे सुनकर वे दोनों चुपचाप चले गए ।  लोगों मे काना फूसी होने लगी कि इतने बड़े आदमी है अब अपनी मांग रखी होगी , मेहमान महिलाओं ने शिखा की माँ को टटोलने की कोशिश की कि –“ दहेज मे कितना रुपया ले रहे है पुरुषोत्तम दास जी ,बड़े आदमी हैं दहेज बहुत मांग रहे  होंगे , क्या बात हो गई  ” तमाम प्रश्नों की झड़ी लगा दी लोगों ने । जितने मुंह उतनी बातें हो रहीं थीं । लेकिन वह तो गए और मंडप मे अपने स्थान पर जाकर बैठ गए । कुछ कहा ही नहीं । सभी बड़ी बेचैनी से इंतजार कर रहे थे कि क्या बात हो गई जो लाला नरोत्तम दास और उनकी पत्नी बिना कुछ बोले ही वहाँ से चले गए । फेरों का कार्यक्रम भी समाप्त हो गया । अब शिखा प्रशांत की पत्नी बन चुकी थी , लेकिन उसका डर ज्यों का त्यों बरकरार था ।
विदाई की बेला आ गई थी , शिखा अपने माँ बाबू जी से दूर नहीं जाना चाहती थी । पर माँ ने समझाया कि बेटी श्रष्टि का नियम यही है कि बेटी को एक दिन माँ का घर छोड़ कर पति के घर जाना ही होता है , वही उसका अपना घर होता है । अचानक कोई  दौड़ता हुआ आया कि दामाद और समधी ने लाला जी को तुरंत बुलाया है , लाला जी गए कुछ औपचारिक बातों के बाद वे दोनों लग्न मंडप मे आ पधारे । दामाद ने आते ही कहा कि – “ माँ मै आपसे कुछ कहना चाहता हूँ ।” सभी को साँप सूंघ गया  । शिखा की माँ के तिलक करने को उठे हाथ रुक गए ,निरीह सी वह उसकी ओर ताकने लगीं । प्रशांत ने आगे कहा –“ ये जो कुछ सामान , रुपया पैसा , जेवर , गाड़ी आप दे रहीं है वह मेरे लिए काफी नहीं है मुझे अभी भी कुछ और चाहिए, आखिर मेरे स्टेटस का सवाल है । माँ रो पड़ी –“अब क्या बाकी बचा है जो इनके स्टेटस का नहीं हो पाया है ।” आँसू पोछते हुए माँ प्रशांत की तरफ लपकी – “ बेटा ! कहीं कोई कमी रह गई है क्या ? बताओ हम पूरी करने की कोशिश करेंगे । प्रशांत ने कहा – वही ठीक रहेगा आपके लिए , आखिर आपकी बेटी की खुशियों का सवाल जो है । ” सब कहने लगे देखा हम कहते थे कि बड़े लोग है तो मांग भी बहुत बड़ी ही होगी । आखिर मांग हो ही गई । प्रशांत बोला –“ जी हाँ आप लोग काफी समझदार है , पर हमारी सासु माँ ही समझदार नहीं है । विदाई तभी होगी जब मेरी मांग पूरी हो जाएगी । ” कहते हुये वह लग्न मंडप से बाहर आ गया । लाला पुरुषोत्तम दास भी मुस्कुरा रहे थे उन्होने बेटे की पीठ ठोंकी , शाबाश बेटा !  वेरी गुड। सभी सकते मे आ गए । अब क्या होगा । इधर शिखा को कांटो खून नहीं ,जिसका डर था वही हुआ । लाला नरोत्तम दास और उनकी पत्नी ने कहा बेटा  - बोलो हम तुम्हारी फरमाइश जरूर पूरी करेंगे । प्रशांत बोल पड़ा – “ तो सुनिए मुझे एक ममतामयी माँ चाहिए जो मुझे ढेर सारा प्यार और अनमोल आशीर्वाद दे सके , और वह आप ही दे सकतीं हैं , क्योंकि जैसा कि आप जानतीं ही हैं कि मेरी माँ नहीं हैं मुझे सिर्फ आपका प्यार , दुलार और मीठी सी डांट चाहिए । बोलिए देंगी आप मुझे हमेशा हमेशा , मुझे दामाद नहीं अपना बेटा मानेंगी आप । क्या ये दहेज दे रहीं हैं ? तभी आपकी बेटी को विदा करा कर ले जाऊंगा नहीं तो अपनी बेटी अपने पास ही रखिए । ” शिखा की माँ खुश हो गईं ,खुशी के आँसू उनकी आँखों से बह निकले उन्होने प्रशांत को गले से लगा लिया और बोलीं –“  बेटा पिछले जन्म मे मैंने जरूर बड़े पुण्य किए होंगे तभी तेरे जैसा दामाद मिला है , बड़ी किस्मत वाली है मेरी शिखा जो तेरी जीवन संगिनी बन कर जा रही है ।” लाला पुरुषोत्तम दास बोले समधिन जी ये हमारे प्रशांत की जिद थी की वह थोड़ी देर आपको परेशान करेगा , मैंने भी थोड़ा साथ दिया मुझे क्षमा कर दीजिये । सारा माहौल खुशी से भर उठा । और विदाई समारोह खुशी से सम्पन्न हो गया । शिखा विदा होकर अपनी ससुराल आ गई । उसकी निगाहों मे प्रशांत की इज्जत बहुत बढ़ गई ।