Thursday 30 May 2013

वो मूक नहीं



राम चरण डंडे से लगातार अपनी गाय को पीट रहा था और गाय थी कि टस से मस नहीं हो रही थी वो अपनी जगह ही खड़ी थी, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसका बछड़ा तेजी से कूद रहा था मानो कह रहा हो मत मारो मेरी माँ को ऐ दुष्ट इंसान । एक बार मुझे इंसान बनने दे सारी कसर पूरी कर कर लूँगा ।”
पास खड़े राम चरण के माता पिता ज़ोर ज़ोर चिल्लाये जा रहे थे ,”का गइया के मारि ही डरिहै का रे।
“हाँ अम्मा आज एहिका मारि डरिहौ ।” खीझते हुये राम चरण बोला । उसको सुबह साहब के बंगले पर दूध लेकर जाना होता था। थोड़ी भी देर होने पर साहब बिगड़ जाते, “कामचोर कहीं के! तुम सब होते ही गंदी नाली के कीड़े हो । तुम्हें समय पर दूध लाने के लिए और अपनी गायों की देखभाल के लिए रखा है और इन साहब को देखो आए दिन बच्चे बिना दूध पिये ही स्कूल चले जाते है ।”
राम चरण को साहब ने अपने फार्म हाउस की देखभाल के लिए रखा था , एक दिन मेम साहिबा के कहने पर  – “अपना फार्म हाउस है और ये वहाँ रहता ही है क्यों न हम कुछ गायें वहाँ रख दें ये गाँव का लड़का है अच्छी तरह देखभाल कर लेगा, और हमारे बच्चों को ताजा घर का दूध भी मिल जाएगा।” साहब को मेम साहिबा की बात जँच गई और उन्होने दो जर्सी गायें रख दीं । गाये खूब दूध देती थी शुरू शुरू मे साहब खुद आए ताकि देख सकें गायें दूध कितना देती हैं । उन्होने राम चरण से पूछा  , “रामू तुम्हारे परिवार मे कौन कौन हैं?” रामू बोला ,’साहब हमरे घर मा माई, बापू, जोरू और एक बिटिया है ।“ साहब बोले ,’ क्यों न अपने परिवार को यहाँ ले आओ तुम्हारा काम भी हल्का हो जाएगा, और आए दिन तुम्हें छुट्टी भी नहीं लेनी पड़ेगी ।“  राम चरण को साहब की बात जंच गयी और वह खुशी खुशी अपने परिवार को ले आया । उसके पिता गोकरन गायों की खूब सेवा करते मानों वे उनकी अपनी ही गायें हों । माँ जनक दुलारी फार्म हाउस मे झाड़ू बुहारू कर दिया करती थीं, पत्नी ने घर संभाल लिया था । सब कुछ सुचारु रूप से चलने लगा । वह सुबह तड़के  उठकर गायों का दूध निकालता और छः बजने से पहले पहुँच जाता साहब के बंगले पर । साहब की बड़ी सी बेकरी थी कई लोग उसमे काम करते थे साहब ने उसे वही काम पर लगा दिया । उसका काम था फैक्ट्री मे निर्मित चीजों को दुकान तक पंहुचाना । रोज वह उनकी सभी दुकानों पर सामान डिलीवर करता था और हिसाब लेकर साहब तक पहुचा देता। वह बड़ी ईमानदारी से अपना करता था। पर गरीब की दुनिया मे हमेशा सब कुछ ठीक नहीं चलता। एक हिस्सेदार ने कई दिनो से पैसे नहीं दिये थे। उसने साहब से कहा,” जुबेर पैसे नहीं दे रहा है.” साहब ने कहा ,” जुबेर को तुरंत बुला लाओ अभी पैसा वसूलता हूँ ।” जुबेर को साहब की अदालत मे हाजिर किया गया। साहब काफी गुस्से मे थे बिफर पड़े , “शाम तक सारा पैसा जमा करा नहीं तो कल से तुझे दुकान से छुट्टी, तू जितने भी गोरख धंधे कर रहा है न, सब मुझे पता है कल तू दुकान मे कदम तभी रखेगा जब पूरा पैसा जमा कर देगा ।” इसके साथ उसे वहाँ से भगा दिया । जुबेर मन ही मन भुनभुनाता हुआ चल दिया । साहब ने रामचरण को बुलाया और दुकान की ज़िम्मेदारी उसे सौंप दी । जुबेर यह सब देख खिसिया गया उसने मन ही मन उसको सबक सिखाने की सोंची ।
रात को छुट्टी के बाद जब राम चरण घर को चला तब थोड़ी ही दूर पर दो लड़कों के साथ जुबेर ने उसे घेर लिया । जुबेर बोला, तोड़ दो इसके हाथ पाँव बहुत चमचागीरी करता है स्साला! अब देखता हूँ कैसे जाएगा दुकान ।“ और सभी ने उसको पीटना शुरू कर दिया। बेहिसाब पीटने से रामचरण की कई हड्डियाँ टूट गई और सिर पर गहरा घाव हो गया अधिक खून बह जाने से वह बेहोश हो गया ।  पूरी रात बीत गई घर मे पत्नी और माँ बापू इंतजार के  करते करते सुबह हो गई । परंतु राम चरण न आया । गोकरन खुद ही दूध लेकर साहब के बंगले गया और सारी बात साहब को बताई । साहब ने उसे खोजने के लिए अपने आदमी भेजे और पुलिस को भी  इत्तिला कर दी उसकी खोज जल्द ही की जा सके । पूरा दिन खोजने के बाद पुलिस को झड़ियों मे एक लावारिस लाश मिली । उसे देखते ही गोकरन गश खाकर गिर पड़े । वह कोई और नहीं रामचरण ही था । गोकरन फार्म हाउस पर बेटे का शव लेकर पहुंचे । उससे लिपट कर माँ अपनी सुध बुध खो बैठी , पत्नी का बुरा हाल था वह बेचारी कभी अपनी चूड़ियों से भरी कलाई को देखती जिसे अभी परसों ही पहन कर आई थी जिसे राम चरण ने अनायास ही चूमते हुये कहा था ,” कईसी नीकी लागि रही हैं” , कभी अपनी दो वर्ष की बेटी को देखती  जिसके लिए न जाने कितने सपने बुने थे, हाय ! कैसे जीवन जिएगी अब।
कोने मे खड़ी गाय के आँख से आँसू उसी तरह बह रहे थे जैसे एक दिन पहले बह रहे थे बार बार रँभाती वो कहती ,”मै मूक नहीं।” उसका बछड़ा उसी तरह कूद रहा था जैसे एक दिन पहले । उसकी भाषा किसी की समझ से बाहर थी ।           

Monday 20 May 2013

तुम सा गर हो साथी


रौनक दौड़ता हुआ आया और माँ को पकड़ कर गोल गोल घूमता हुआ बोला ,“माँ मै पास हो गया ! माँ तेरा बेटा आई ए एस बन गया । माँ आज पापा जरूर खुश हो जाएंगे वो हमेशा मुझसे नाराज रहते है , कि मै नालायक हूँ कुछ कर नहीं सकता ।“
“हाँ हाँ बेटा जरूर , तुमने आज खुशी ही ऐसी दी है ।“ सुमन जी खुशी से लरजते हुए बोलीं। “ बेटा तुमने आज हमारा जीवन सफल कर दिया ।“ उनकी आँखों से खुशी के आँसू निकल पड़े। आज उनका सपना साकार हो गया था । बस उन्होने यही चाहा था कि रौनक आई ए एस आफिसर बन जाय । रौनक सुमन और निखिलेश का इकलौता बेटा था । निखिलेश मल्टीनेशनल कंपनी मे एक्ज़ीक्यूटिव थे और अधिक तर विदेशों मे रहते थे इसलिए घर को समय नहीं दे पाते थे ,पर वो ये जानते थे की सुमन कैसी भी परिस्थिति को बड़ी कुशलता से संभाल लेती है । सुमन भी एक बालिका विद्यालय मे प्रधानाचार्या के पद पर कार्यरत थीं । रौनक के बाद उनकी दूसरी संतान नहीं हुई । रौनक पढ़ने मे बहुत तेज था लेकिन साथ ही बहुत शैतान भी  था। अपनी शैतानियों के बीच भी वो पढ़ने का समय निकाल लिया करता था । कक्षा मे हमेशा अव्वल आता था । एक बार अपने फाइनल एक्जाम के समय वो बीमार पड़ गया और परीक्षा नहीं दे पाया , और बहुत रोया , टीचर को उसकी परीक्षा लेनी ही पड़ी । ऐसा ही था वो कभी हार न मानने वाला । अपनी शरारतों के बावजूद अध्यापकों मे लोकप्रिय था ।
 आज उसकी मेहनत रंग लाई थी अपने मम्मी पापा का सपना पूरा किया था । रौनक के मित्र का फोन आ गया वह उसके साथ व्यस्त हो गया । निखिलेश उस समय इंडिया से बाहर थे, सुमन जी ने उन्हे फोन पर सूचना दी ,” सुनिए आज आपके बेटे ने कर दिखाया , आप नाहक ही कोसते रहते थे ।“ निखिलेश जी बोले, “ठीक है आज उसी का नतीजा सामने आया न ।” वे बोली ,”जी अब कब तक आ रहे हैं आप।“ “बस अभी लो ! तुम बस बाहर आकर गेट खोलो" निखिलेश ने चुटकी ली । “ अरे! क्या कह रहे है” सुमन जी अचंभित सी बोलीं । वे बोले, “बाहर आओ भी” सुमन दौड़ती हुई सी गेट की ओर भागी । सचमुच निखिलेश बाहर खड़े थे ।
अंदर आकर ज़ोर से कड़कती हुई आवाज मे बोले,” रौनक, मित्र मंडली से फुर्सत हुई हो तो नीचे आ जाओ ।“ रौनक किसी से फोन पर बात कर रहा था उसके हाथ से फोन छूटते बचा,” अरे पापा ! पापा आ गए।“ भागता हुआ आया। निखिलेश जी बड़ी गहन मुद्रा मे सोफ़े पर बैठे थे । सुमन जी चाय बना रहीं थी और सिर नीचे झुकाये थीं ।
 उसने सोचा ,” मारे गए पापा तो गुस्से मे लग रहे है।”
निखिलेश जी दुबारा बोले,” क्यों बरखुरदार क्या गुल खिलाये इस बार , पास वास हुए कि नहीं।”
खुशी से उछलते हुये रौनक पापा के पास पहुंचा ,” जी पापा इंडिया मे दसवां स्थान है ।“
 “अच्छा बता तो ऐसे रहे हो जैसे पहला स्थान मिला है ,” चेहरे पर आ रही हंसी को रोकते हुए निखिलेश जी बोले। इसी के साथ सुमन जी हंस पड़ीं।
“अब तो पार्टी होनी चाहिए” निखिलेश ने कहा । सुमन जी ने भी स्वीकृति दे दी । पर रौनक बोला ,” पापा !  इफ यू डोंट माइंड , मेरी ज्वाइनिंग के बाद पार्टी कर लेते है प्लीज़।“
 निखिलेश अचंभे से उसको देखने लगे, “ क्या ये हमारा ही रौनक है सुमन ! “
"जी पापा बिलकुल आपका ही रौनक है, बस पार्टी बाद मे दीजिएगा ।“
कुछ समय बाद उसकी ज्वाइनिंग हो गई और निखिलेश जी ने शानदार पार्टी दी । शहर के बड़े और नामी गिरामी लोगों ने शिरकत की ।
 सेठ आलोक नाथ जी शहर के सबसे बड़े वस्त्र व्यापारी थे। उनकी इकलौती बेटी थी शैलजा विदेश मे रह कर डाक्टरी पढ़ रही थी। आलोक नाथ जी ने निखिलेश जी से उसके रिश्ते की बात चलाई । निखिलेश जी को कोई एतराज न था पर उन्होने बेटे की इच्छा जानना जरूरी समझा । उन्होने आलोक नाथजी से कहा,” भाई हमे तो कोई आपत्ति नहीं है पर हम चाहते है कि दोनों बच्चे एक दूसरे को देख ले समझ लें तभी ठीक रहेगा ।"
“ हाँ हाँ !! क्यों नहीं? आज हमारा आपका जमाना थोड़े ही रहा । अगले हफ्ते शैलजा इंडिया आ रही है उसकी पढ़ाई पूरी हो गई है । आप तभी कोई सही मौका देख ये काम करा लीजिये,“ आलोक नाथ जी बोले ।
सुमन जी सोचने लगीं ,” कहीं ऐसा न हो जल्दबाज़ी मे हम कोई गलत निर्णय ले बैठें।“
अगले हफ्ते शैलजा इंडिया आ गई । आलोक नाथ जी ने देखने का कार्यक्रम अपने घर पर ही रखा । शैलजा ने ही अपने घर मे मेहमानों की आवभगत की बागडोर संभाल रखी थी । क्योंकि शैलजा की माँ नहीं थीं । कुछ औपचारिक बातों के बाद निखिलेश जी ने आलोक जी से बोले ,”भाई अब हम बूढ़े बैठ कर बातें करते हैं और बच्चों को अकेले थोड़ी देर एक दूसरे को समझने का मौका दिया जाय ,क्यों आलोक आपका क्या ख्याल है?”
  जी बिलकुल ” आलोक जी ने कहा ।
शैलजा और रौनक बाहर बगीचे मे जाकर बैठ गए । शैलजा ने पूछा ,”आपका अभी अभी प्रशासनिक सेवा मे चयन हुआ है किस शहर मे नियुक्त हुये है ।” रौनक शैलजा के शुद्ध हिन्दी मे बात करने से काफी प्रभावित हुआ बोला ,”कानपुर मे । आपकी हिन्दी तो बहुत अच्छी है ।“
शैलजा ने कहा, “धन्यवाद , हिंदुस्तानी हूँ हिन्दी तो अच्छी होनी ही चाहिए, वैसे भी मै दिखावे की ज़िंदगी और तौर तरीकों को कम पसंद करती हूँ।“
“ओह ! गुड , आपकी पढ़ाई भी अब खत्म हो गयी है आपका क्या इरादा है यहाँ इंडिया मे रहेंगी या फिर वापस लौट जाएंगी“ रौनक ने पूछा ।
शैलजा ने कहना शुरू किया,” मैंने डाक्टरी की पढ़ाई विदेश मे रह कर अधिक धन कमाने के लिए नही की है । मुझे अपने देश मे रह कर उन लोगों के लिए कुछ करना है एक ऐसा उच्चस्तरीय अस्पताल बनाना है जहां हर तबके के लोगों का इलाज हो खास कर उन लोगों का जो किसी कारण वश इलाज के अभाव मे या तो दम तोड़ देते हैं या कई बार ऐसा भी होता है पैसे की कोई कमी नहीं होती लेकिन उचित और उच्चस्तरीय सुविधायें न मिल पाने के कारण भी मरीजों को बचाया नहीं जा पाता है।"
 "बहुत ही अच्छा ख्याल है आपका , इससे काफी लोगों का भला होगा" रौनक प्रभावित होते हुए बोला । शैलजा ने गहरी सांस ली फिर कुछ  सोच कर उसकी अंखे भर आयीं ।
रौनक ने कहा ," कोई बात है आप अगर मुझे बताना चाहे तो बता दें ।"
 शैलजा ने खुद को संयत किया और बोली,"  मुझे आज भी वो दिन याद है जब मेरी माँ मुझे छोड़ कर चली गईं थीं सदा के लिए, उनकी मौत कैंसर से हुई थी। पापा के पास पैसे की कोई कमी नहीं है फिर भी हम माँ को बचा नहीं पाये। उच्च्स्तरीय इलाज के लिए डाक्टर्स ने उन्हे विदेश ले जाने को कहा क्योंकि वहाँ पर उनका इलाज संभव था लेकिन जब तक हम उन्हे ले जा पाते वे ही चल दीं थीं । उनका दर्द उनका छटपटाना जब याद आता है तो मन मे ये इच्छा और बलवती हो जाती है कि इलाज के बिना अब कोई माँ अपने बच्चों से न रूठे । इसलिए मैंने डाक्टरी पढ़ी है और अब यहाँ ही अस्पताल खोलूँगी जिसमे सभी सुविधायें होंगी हर संभव इलाज मुहैया कराया जा सके इस बात का पूरा ख्याल रखा जाएगा ।  जिससे पापा भी खुश रहेगे और मुझे भी संतुष्टि रहेगी कि पापा अकेले नहीं है। इसलिए मै ऐसे लड़के से ही शादी करना चाहती हूँ जो मेरा साथ दे मेरी भावनाओं को समझे । " रौनक शैलजा की बातों से बेहद प्रभावित हुआ पर उसने शैलजा से कुछ कहा नहीं। धीरे से उठा और बोला, "चलिये अब काफी देर हो गई है मां पापा इंतजार कर रहे होंगे।" उसके इस तरह उठ आने को शैलजा ने नकारात्मक उत्तर समझा। अंदर आने पर सुमन जी ने आँखों से इशारे ही इशारे मे पूछ लिया। उसने हाँ मे सिर हिला दिया , खुशी से निखिलेश जी ने आलोक जी को गले लगाया बोले ,"भाई अब तो हम समधी हो गए।" आलोक जी की आँखों मे खुशी के आँसू छलक आए।  रौनक ने शैलजा की ओर देखा शैलजा ने सिर झुका लिया मानो एक दूसरे से कह रहे हो "तुम सा गर हो साथी" ।