Monday 3 June 2013

चुल्लू भर पानी ( लघु कथा )

चिलचिलाती धूप मे भी तेरह –चौदह वर्षीय किशोर सिर पर मलबे से भरी टोकरी उठाए बहुमंज़िली इमारत से नीचे उतर रहा था । उतरते उतरते उसे चक्कर आने लगा उसने सुबह से कुछ खाया नहीं था । उसके घर मे कोई बनाने वाला नहीं था , उसकी माँ बहुत बीमार थी उसके लिए दवा का बंदोबस्त जो करना था उसी के वास्ते वह काम करने आया था । चक्कर आने पर वह वहीं सीढियों पर दीवाल से सिर टिका कर बैठ गया । ठेकेदार उधर से चला आ रहा था उसे बैठे देख गरजा – “ अबे ओ! कामचोर कहीं के ! जरा सा काम किया नहीं कि बैठ गए मुंह लटका कर ।“ वह धीरे से बोला –“साहब दो घूंट पानी” फिर से वहीं ढेर हो गया । ठेकेदार ने जोर की लात उसके सिर पर मारी, वह लड़खड़ाता हुआ सीढ़ियों से नीचे जा गिरा । उसके सिर व मुंह से खून निकल पड़ा था । ठेकेदार गुर्राया -“जा मर चुल्लू भर पानी मे , एक ढेला भी नहीं मिलेगा तुझे ।“ वह धीरे से बोला –“ साहब दो घूंट पीने को नहीं है , मरने को चुल्लू भर कहाँ से दोगे ?” सभी उसका मुंह ताकते रह गए । कितनी सटीक चोट मारी थी किशोर ने ।