राम चरण डंडे से लगातार अपनी गाय को पीट रहा था और गाय थी कि टस से मस नहीं हो रही थी वो अपनी जगह ही खड़ी थी, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसका बछड़ा तेजी से कूद रहा था मानो कह रहा हो “ मत मारो मेरी माँ को ऐ दुष्ट इंसान । एक बार मुझे इंसान बनने दे सारी कसर पूरी कर कर लूँगा ।”
पास खड़े राम चरण के माता पिता ज़ोर ज़ोर चिल्लाये जा रहे थे ,”का गइया के मारि ही डरिहै का रे।‘
“हाँ अम्मा आज एहिका मारि डरिहौ ।” खीझते हुये राम चरण बोला । उसको सुबह साहब के बंगले पर दूध लेकर जाना होता था। थोड़ी भी देर होने पर साहब बिगड़ जाते, “कामचोर कहीं के! तुम सब होते ही गंदी नाली के कीड़े हो । तुम्हें समय पर दूध लाने के लिए और अपनी गायों की देखभाल के लिए रखा है और इन साहब को देखो आए दिन बच्चे बिना दूध पिये ही स्कूल चले जाते है ।”
राम चरण को साहब ने अपने फार्म हाउस की देखभाल के लिए रखा था , एक दिन मेम साहिबा के कहने पर – “अपना फार्म हाउस है और ये वहाँ रहता ही है क्यों न हम कुछ गायें वहाँ रख दें ये गाँव का लड़का है अच्छी तरह देखभाल कर लेगा, और हमारे बच्चों को ताजा घर का दूध भी मिल जाएगा।” साहब को मेम साहिबा की बात जँच गई और उन्होने दो जर्सी गायें रख दीं । गाये खूब दूध देती थी शुरू शुरू मे साहब खुद आए ताकि देख सकें गायें दूध कितना देती हैं । उन्होने राम चरण से पूछा , “रामू तुम्हारे परिवार मे कौन कौन हैं?” रामू बोला ,’साहब हमरे घर मा माई, बापू, जोरू और एक बिटिया है ।“ साहब बोले ,’ क्यों न अपने परिवार को यहाँ ले आओ तुम्हारा काम भी हल्का हो जाएगा, और आए दिन तुम्हें छुट्टी भी नहीं लेनी पड़ेगी ।“ राम चरण को साहब की बात जंच गयी और वह खुशी खुशी अपने परिवार को ले आया । उसके पिता गोकरन गायों की खूब सेवा करते मानों वे उनकी अपनी ही गायें हों । माँ जनक दुलारी फार्म हाउस मे झाड़ू बुहारू कर दिया करती थीं, पत्नी ने घर संभाल लिया था । सब कुछ सुचारु रूप से चलने लगा । वह सुबह तड़के उठकर गायों का दूध निकालता और छः बजने से पहले पहुँच जाता साहब के बंगले पर । साहब की बड़ी सी बेकरी थी कई लोग उसमे काम करते थे साहब ने उसे वही काम पर लगा दिया । उसका काम था फैक्ट्री मे निर्मित चीजों को दुकान तक पंहुचाना । रोज वह उनकी सभी दुकानों पर सामान डिलीवर करता था और हिसाब लेकर साहब तक पहुचा देता। वह बड़ी ईमानदारी से अपना करता था। पर गरीब की दुनिया मे हमेशा सब कुछ ठीक नहीं चलता। एक हिस्सेदार ने कई दिनो से पैसे नहीं दिये थे। उसने साहब से कहा,” जुबेर पैसे नहीं दे रहा है.” साहब ने कहा ,” जुबेर को तुरंत बुला लाओ अभी पैसा वसूलता हूँ ।” जुबेर को साहब की अदालत मे हाजिर किया गया। साहब काफी गुस्से मे थे बिफर पड़े , “शाम तक सारा पैसा जमा करा नहीं तो कल से तुझे दुकान से छुट्टी, तू जितने भी गोरख धंधे कर रहा है न, सब मुझे पता है कल तू दुकान मे कदम तभी रखेगा जब पूरा पैसा जमा कर देगा ।” इसके साथ उसे वहाँ से भगा दिया । जुबेर मन ही मन भुनभुनाता हुआ चल दिया । साहब ने रामचरण को बुलाया और दुकान की ज़िम्मेदारी उसे सौंप दी । जुबेर यह सब देख खिसिया गया उसने मन ही मन उसको सबक सिखाने की सोंची ।
रात को छुट्टी के बाद जब राम चरण घर को चला तब थोड़ी ही दूर पर दो लड़कों के साथ जुबेर ने उसे घेर लिया । जुबेर बोला, “तोड़ दो इसके हाथ पाँव बहुत चमचागीरी करता है स्साला! अब देखता हूँ कैसे जाएगा दुकान ।“ और सभी ने उसको पीटना शुरू कर दिया। बेहिसाब पीटने से रामचरण की कई हड्डियाँ टूट गई और सिर पर गहरा घाव हो गया अधिक खून बह जाने से वह बेहोश हो गया । पूरी रात बीत गई घर मे पत्नी और माँ बापू इंतजार के करते करते सुबह हो गई । परंतु राम चरण न आया । गोकरन खुद ही दूध लेकर साहब के बंगले गया और सारी बात साहब को बताई । साहब ने उसे खोजने के लिए अपने आदमी भेजे और पुलिस को भी इत्तिला कर दी उसकी खोज जल्द ही की जा सके । पूरा दिन खोजने के बाद पुलिस को झड़ियों मे एक लावारिस लाश मिली । उसे देखते ही गोकरन गश खाकर गिर पड़े । वह कोई और नहीं रामचरण ही था । गोकरन फार्म हाउस पर बेटे का शव लेकर पहुंचे । उससे लिपट कर माँ अपनी सुध बुध खो बैठी , पत्नी का बुरा हाल था वह बेचारी कभी अपनी चूड़ियों से भरी कलाई को देखती जिसे अभी परसों ही पहन कर आई थी जिसे राम चरण ने अनायास ही चूमते हुये कहा था ,” कईसी नीकी लागि रही हैं” , कभी अपनी दो वर्ष की बेटी को देखती जिसके लिए न जाने कितने सपने बुने थे, हाय ! कैसे जीवन जिएगी अब।
कोने मे खड़ी गाय के आँख से आँसू उसी तरह बह रहे थे जैसे एक दिन पहले बह रहे थे बार बार रँभाती वो कहती ,”मै मूक नहीं।” उसका बछड़ा उसी तरह कूद रहा था जैसे एक दिन पहले । उसकी भाषा किसी की समझ से बाहर थी ।