Monday 4 February 2013

कर्कशा

लाल जोड़े मे लिपटी मालती विक्रम के साथ जब अपनी ससुराल की दहलीज पर आकर उतरी तो घर की महिलाएं मंगल गान करने लगीं –
“ मोरा बन्ना दुल्हन लेके आ गया ,
  सुंदर सुघड़ छरहरी काया
  रूप मनोहर है पाया  
  लक्ष्मी का रुप लेके आ गया ”………..
मंगल गान और तमाम रस्मों रिवाजों के साथ मालती ने घर मे कदम रखा । घूँघट की आड़ से उसने घर के हर कोने को एक ही बार मे निहार लिया । हंसी ठिठोली और मुंह दिखाई की रस्म के बाद महिलाओं ने  विक्रम की माँ से कहा – “ बहू से कुछ गाना बजाना करवा लो । हम भी तो देखे कि बहू कुछ गा बजा लेती है या नहीं । विक्रम की माँ शांति देवी ने बहू से कहा – “चलो बेटा अपने भारी कपड़े बदल लो फ्रेश होना चाहो तो हो जाओ फिर थोड़ा बहुत गा बजा दो अभी रसोई की रस्म भी होनी है , मैं अभी व्यस्त हो जाऊँगी क्योंकि मेहमान भी विदा होने लगेंगे । फिर तुम आराम कर लेना ।”
मालती ने तमक कर कहा – “ मम्मी जी आप सब मेहमानों से कह दीजिये कि मै इसके लिए अभी तैयार नहीं हूँ , पहले मै थोड़ा फ्रेश हूंगी थोड़ा रेस्ट करूंगी, मुझे भूख भी लगी है कुछ खाने को भिजवा दीजिये और जाते जाते दरवाजा बंद कर दीजिएगा प्लीज़ ।
शांति देवी उसका मुंह देखती रह गईं । मन मे सोंचने लगीं कहीं उनसे  बहू चुनने मे कोई गलती तो नहीं हो गई । यदि बहू की तबीयत ठीक नहीं है तो कोई बात नही , ये कार्यक्रम तो फिर कभी कर लिया जाएगा अभी तो पहले बहू के लिए कुछ खाने को भिजवा देती हूँ । और वे दरवाजा बंद कर  चली गईं । मेहमान महिलाओं ने चुटकी ली – क्या हुआ शांति,  बहू ने आने से मना कर दिया , क्या उसे कुछ आता नहीं है ।” शांति देवी ने कहा “ अभी अभी चली आ रही है थक गई होगी बेचारी , थोड़ा आराम करने दो फिर सुना देगी ।”
विक्रम की बहन नंदनी खाना लेके भाभी के कमरे मे गई , भाभी जी सो रहीं थी । उसने जगाया – “ भाभी जी उठिए खाना आ गया है चलिये खा लीजिये ।” मालती झल्लाते हुए उठी – “ कैसे जाहिल लोग हैं यहाँ कोई चैन से सोने भी नहीं देता ।” नंदनी ने कहा “ भाभी जी सो तो आप बाद मे भी लीजिएगा अभी आइए खाना खाइये , और उसने अपनी प्लेट उठाई और खाना शुरू कर दिया तब तक मालती भी हांथ मुंह धोकर आगई । उसने देखा कि नंदनी खाना खा रही है वह कड़कते हुए बोली कि – “ क्या यहाँ किसी को इतनी भी तमीज़ नहीं है कि जिसके लिए खाना लाया गया है कम से कम उससे पर्मिशन तो ले ही ली जाए ।”  नन्दनि कुछ समझी नहीं । मालती फिर बोली – “ जाइए अपनी प्लेट उठाइए और विक्रम को भेज दीजिये । और हाँ अब बार बार कोई हमें डिस्टर्ब न करे इस बात का ध्यान रखिएगा ।” नंदनी चुपचाप उठी और चली गई । माँ के पास जाकर उसने कहा – माँ भाभी का एटिट्यूड कुछ ठीक नहीं है , हमने शायद चुनाव करने मे गलती की है ।”
शांति देवी ने समझाया कि थक गई होगी इतने दिनो तमाम रसमे करते करते थोड़ा दिमाग परेशान होगा और कुछ नहीं । चल अब तू भी खाना खा और भैया को उसके कमरे मे भेज दे । नंदनी ने भैया को कमरे मे भेज दिया । वहाँ क्या बात हुई किसी को पता नहीं चला , लेकिन विक्रम झुँझलाता हुआ माँ के के पास आकर बैठ गया । शांति देवी के दोनों बच्चे समझदार थे सो उन्होने मेहमानों के सामने कोई बात करना उचित न समझा । मेहमान भी समझ गए कि बहू ठीक नहीं है । और वे अपने घरो को वापस चले गए ।
मालती का रुख घर वालों के प्रति बहुत अच्छा नहीं था , जबकि वह खुशकिस्मत थी कि उसे विक्रम जैसा पति और शांति देवी जैसी सास मिली थी हाँ नंदनी थोड़ा हमउम्र के कारण कभी कभार खिलाफत कर लेती लेकिन माँ के समझाने से वह शांत भी हो जाती । परंतु मालती तो जैसे सबको अपना दुश्मन ही मानती थी यहाँ तक कि कोई मोहल्ले से भी अगर उससे मिलने आ जाता तो वह अपनी सास पर बिफर जाती ,सास भी अपने नाम के अनुरूप ही थीं वह हमेशा उसे समझा बुझा लेती ।  शांति देवी ने सोचा समय रहते बेटी का ब्याह भी हो जाना चाहिए ताकि ये ज़िम्मेदारी भी खत्म हो और वह चैन से अपनी आँखें बंद कर सके। विक्रम और मालती को बुला कर उन्होने मन की बात बताई । विक्रम जी जान से जुट गया नंदनी के लिए लड़का खोजने मे ।
नंदनी के भाग्य से बड़ा ही अच्छ घर वर मिला , बात फटाफट तय हो गई । चट  मंगनी पट ब्याह हो गया । ब्याह मे मालती ने खूब बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया , सब जिम्मेदारियाँ शांति देवी ने उसी को सौंप दीं थीं , उसने अपनी जिम्मेदारियाँ बखूबी निभाईं । जो  लोग एक दिन पहले तक उसकी बुराई किया करते थे वह अब तारीफ के पुल बांध रहे थे । आखिर इतना परिवर्तन मालती मे आया कैसे ?
ब्याह निपट गया नंदनी भी ससुराल चली गई , जाते जाते वह भाभी से लिपट कर खूब रोई क्योंकि दोनों ने एकदूसरे की टांग खींचने मे कोई कसर न छोड़ी  थी । माँ शांति देवी भी दुखी थी लेकिन खुश भी थी कि उनकी सब जिम्मेदारियाँ निपट गईं थीं । नंदनी के जाने के बाद शांति देवी उदास रहने लगीं थीं । एक दिन उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई उन्हे दिल का दौरा पड़ा और उन्हे अस्पताल मे भर्ती करना पड़ा । डाक्टर ने कहा उनके पास समय कम है उन्हे जितना खुश रख सकते है खुश रखिए । मालती ने यहाँ भी अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई , सास का पूरा ख्याल रखती । विक्रम और नंदनी भी आश्चर्य चकित थे । माँ ठीक होकर जब घर आगई तब एक दिन विक्रम ने मालती से पूछा कि उसका ये रूप असली है या वो रूप असली था जो पहले  दिन से देख रहा था । मालती रो पड़ी रोते रोते उसने बताया कि पापा ने आप लोगों से एक बात छुपाई थी वह ये कि मेरी माँ मेरी नहीं बल्कि सौतेली माँ है और कभी भी उन्होने इस लायक ही नहीं समझा कि मै भी कोई काम ज़िम्मेदारी से कर सकती हूँ हमेशा मुझे नीचा दिखाती रहती थी । मेरे मन मे ये बात बैठ गई थी कि मै किसी काम के लायक नहीं हूँ मै एकदम नकारा और जीवन का बोझ हूँ जिसे वे ढो रही हैं । मै इन बातों को सुन सुन कर बिलकुल पत्थर हो गई थी । शादी हुई तो यही सोच लेके यहाँ आई कि जब पीहर मे प्यार को तरसती रही तो यहाँ क्या मिलेगा । ससुराल तो ससुराल ही होती है । लेकिन माँ जी के प्यार ने मेरी ज़िंदगी ही बदल दी है मुझे ऐसा लगता है कि मै बरसों से प्यासी थी और अब जाकर मुझे पानी नसीब हुआ है । खुश किस्मत हूँ मैं कि माँ जी जैसी सास मुझे मिली है । मै दुआ करूंगी कि हर लड़की को ऐसी सास मिले । अपनी कहानी सुना कर वह चुप हो गई । विक्रम हंस पड़ा और मालती को गले से लगा लिया ।