Monday 19 May 2014

परिंदे

परिंदे  ---- कहानी


नीलिमा आँगन मे बैठी हुई लेबर को काम बता रही थी की पीछे वाले आँगन के सारे पेड़ काट कर सफाई कर दो , तीन दिन मे यहाँ मैदान साफ चाहिए । लेबर कुछ सकपका गया कि- “इतने सारे पेड़ मैडम जी क्यों कटवा देना चाहती है , जब कि ये तो फल दे रहे है और बगीचा भी कितना सुंदर लग रहा है ।  उसने डरते हुए बोला- “मैडम जी हरे पेड़ नहीं कटवाने चाहिए पाप लगता है ।“ कुछ गरजते हुए नीलिमा बोली –“चुपचाप काम करो मै तुम्हें पैसे दे रही हूँ , तुम्हें नहीं करना तो कोई और करेगा जिसको पैसा दूँगी वो करेगा ।“ ठीक है मैडम मै कर दूंगा “ और वह अपने काम मे जुट गया पहले नीचे घास सफाई की । दोपहर हो गई थी उसने रोटी खाने की छुट्टी ली और वहीं एक पेड़ के नीचे खाने बैठ गया , खा पी कर उसने अपना गमछा बिछाया और वहीं लेट गया । उस पेड़ पर खूब सारी चिड़िया बैठी ची ची चूँ चूँ कर इस डाल से उस डाल फुदक फुदक कर खेल रही थी । वो बड़े ध्यान से उनको देखने लगा, उसका मन उन्हे खुशी से खेलते हुए देख खुश हो रहा था । उसने सोचा कुछ ही देर बाद इनसे इनका घर छिन जाएगा और ये बेघर हो जाएंगे । ये पाप मुझे करना ही पड़ेगा वरना मेरे बच्चे भूखे रह जाएंगे ।“ उसके मन मे पाप का बोझ बढ़ता जा रहा था वो ग्लानि से भर गया । उसने सोचा नहीं करेगा वो ये काम।  उसने काम छोड़ कर जाने का निर्णय लिया । जैसे ही वह चला उसके रोते कलपते बच्चो का मुंह उसके सामने आ गया । और वह रुक गया सोचा – चलो मैडम जी को ही किसी तरह समझाया जाए शायद वो मान जाए ।” नीलिमा तब तक आँगन मे आ चुकी थी उसने देखा लेबर खड़ा हुआ है और पेड़ एक भी नहीं कटे है वो बिफर पड़ी –“ कामचोर कहीं के !!! आधा दिन निकल गया है और तेरा काम अभी तक शुरू भी नहीं हुआ है ।” वो बोला – नहीं मैडम जी बस काम करने जा ही रहे है , मैडम जी अगर आप गुस्साएं नहीं तो एक बात कहना चाहते है ”, वह बोली – “ठीक है बोलो ।” उसने कहा – “मैडम जी , हम काम करने ही निकले है काम तो हम करेंगे ही लेकिन आप इन पेड़ों पर बैठे हुये पंछियों को देखिये मैडम कितने खुश है अभी अपने घर मे है । आप इन पेड़ों को मत कटवाइए, इनका घर इनसे मत छीनिए ।” वह बोली –मुझे यहाँ हास्टल बनाना है तुम यहाँ की सफाई करो बस !!! उसने चुपचाप कुल्हाड़ी उठाई और चल दिया काम करने । “ठक-ठक ठक –ठक कुल्हाड़ी पेड़ पर आघात करने लगी, सारे पंछी शोर मचाते हुये इधर उधर उड़ने लगे । अपने घर के छिन जाने दुःख साफ झलक रहा था । नीलिमा वहीं कुर्सी लेकर बैठ गई – कहीं लेबर काम चोरी न करने लगे बड़ी मशक्कत करने के बाद वह पेड़ काट पाया । शाम होने लगी थी उसने छुट्टी कर ली मैडम से पैसे लिए और घर चला गया । आज उसके बच्चों को तो खाना मिल गया लेकिन उसकी आत्मा धिक्कारती रही । ऐसा नहीं था कि उसने पेड़ पहली बार काटा था ,हाँ !! हरा भरा पेड़ जरूर पहली बार काटा था उस पर कई तरह के पंछी और नन्ही गौरैया का जोड़ा भी था । वे कहाँ गए होंगे ? सोचते सोचते कब आंख लगी उसे पता नहीं चला । सुबह उठने पर उसका मन बड़ा अनमना था । वह काम पर नहीं जाना चाहता था लेकिन कल ही तो उसने देखा जब वह अपनी कमाई के पैसे लेकर खाने पीने की चीजे लाया था बच्चे कितने खुश हुये थे । न चाहते हुये भी वह जाने के लिए तैयार हो गया और काम पर पहुँच गया । आज उसको दूसरा पेड़ काटना था । जब वह अपने काम को करने के लिए कुल्हाड़ी लेकर काटने चला तो अनायास उसकी नजर ऊपर उठ गई वहाँ कोई पंछी नहीं था एक छोटी सी गौरैया अकेली बैठी थी । बार बार सिर घूमा कर नीचे देखती कभी ऊपर देखती कभी उस मनुष्य को , जो पेड़ काटने की खातिर कुल्हाड़ी लिए खड़ा था । चिड़िया नीचे उतरी जमीन पर उसके पैर के पास बैठ गई रामदीन ने कुल्हाड़ी छोड़ दी उसके पास नीचे बैठ गया हाथ बढ़ाया चिड़िया उसके हाथ पर चढ़ गई उसने उसको किसी ऊंचे स्थान पर रखना चाहा लेकिन चिड़िया उसके हाथ पर ही बैठी रही । तब तक नीलिमा की कड़कती हुई आवाज उसे सुनाई दी – क्या कर रहे हो अभी तक काम क्यों नहीं शुरू किया ?’ वह बोला – देखिये मैडम ये चिड़िया कुछ कह रही है, आप इसे अपने हाथ पर लीजिये । चिड़िया जैसे कुछ कह रही थी कभी नीलिमा को टुकुर टुकुर ताकती कभी रामदीन को । आज सुबह नीलिमा को बड़ा अजीब सा लगा लगा जैसे सुबह नहीं हुई अभी । रोज तो चिड़ियों की चहचहाने की आवाज कानों मे पड़ती थी बड़ा अच्छा लगता था । आज उन्हे भी कुछ खटक रहा था ।
उस नन्ही गौरैया के भोले पन ने उनके मन को मोह लिया था उन्होने निर्णय लिया कि –अब वे पेड़ नहीं कटवाएंगी । और इस बगीचे को ज्यों का त्यो ही रहने देंगी । उन्होने रामदीन से कहा कि –जाओ रामदीन अब इस बगीचे को यों ही रहने दो मै पेड़ नहीं कटवाउंगी इन पंछियों का घर यों ही रहने दो । मै भी चंद पैसो कि खातिर इतना सुंदर बगीचा उजाड़ कर हास्टल बनवाने जा रही थी सोच रही कि आस पास कई कालेज है बच्चों को रहने की जगह चाहिये होगी सो .... और मेरा मन भी लगा रहेगा । लेकिन अब मै इन पंछियों के साथ समय बिताऊँगी । तुम आज की दिहाड़ी ले लो कल से तुम हमारे बगीचे की देखभाल का काम स्ंभलोगे । इनके खाने पीने का बंदोब्स्त करो । आज नीलिमा के बगीचे मे ढेरों चिड़ियाँ आती है उनको बहुत सुकून मिलता है सारा समय कब इन पंछियों के साथ बीत जाता उन्हे पता ही नहीं चलता ।
 






Thursday 27 March 2014

मजदूरी ............



मजदूरी

“ बापू ! बापू  ! क्या आज भी आप काम पर नहीं जाएंगे ? क्या हम आज फिर से भूखे ही रहेंगे ?” नन्ही सोना ने मचलते हुये अपने पिता से प्रश्न किया ।
“ जाऊंगा !! जान मत खा , भूख से मर नहीं जाएगी “ भावहीन सा बैठा हुआ ननहकू तंबाकू का पैकेट फाड़ कर मुंह मे डालते हुये बोला ।
सोना फिर बोली , “ बापू कल भी अम्मा ने कुछ नहीं दिया था एक सूखी रोटी ही दी थी सब्जी भी नहीं थी ।”
“ हाँ तो क्या हुआ ?” तुनकता हुआ बोला ननहकू ।
उसकी पत्नी रुक्मणी जोर ज़ोर से बड़बड़ाने लगी “ कब तक बैठा रहेगा घर पर बाहर निकलेगा तभी तो काम मिलेगा । कोई घर बैठे तो रोटी नहीं दे जाएगा न । जब देखो घर पर पड़े रहने का बहाना ढूंढ ही लेता है मुआ ।”
“ क्या करूँ जान दे दूँ ? जब काम नहीं मिल रहा तो !! किस्मत ही खोटी है । जाता तो हूँ रोज नहीं मिलता काम क्या करूँ , मै खुद परेशान हूँ तुम सबकी चिंता है मुझे  ” ननहकू कुछ बिलखता हुआ सा बोला ।
“ बेटी दो दिन से भूखी है , कल तो मालकिन ने कुछ बचा हुआ खाना दे दिया था उससे सबका काम चल गया था । अब मालकिन चली गईं है अपने बेटे पास और मेरी छुट्टी कर गईं है , मालकिन से कुछ पैसा मांगा था उन्होने साफ मना कर दिया । अब तक पूरे महीने का पैसा एडवांस ले चुकी हूँ दूसरे महीने का मांगा था उन्होने मना कर दिया कि अब वे तीन महीने तक तो रहेंगी नहीं तो काम भी नहीं होगा फिर एडवांस कैसा । ये अमीर लोग होते ही ऐसे है इन्हे कभी किसी की फिकर नहीं होती ये बस अपना देखते है जियो चाहे मरो इनका काम किए जाओ बस ! ” रुक्मणी बोलते बोलते रुकी ।
ननहकू ने समझाया , “ देख जब तू उनसे पहले ही उधार ले चुकी है तो तेरी मालिकीन कैसे देगी दूसरे महीने का , तू चिंता मत कर मै कुछ सोचता हूँ ।”  
 कुछ सोच कर वह उठा और अनमने भाव से अपनी टूटी हुई चप्प्लों को पैर मे लटका कर चल दिया । सोच रहा था कहाँ जाए काम भी बंद है कोई नया काम मिलने से रहा ..........
मौसम बहुत खराब था , सुबह से धूप ने अपना दरवाजा नहीं खोला था । चारो तरफ धुंध ही धुंध थी इस कड़कड़ाती ठंड मे लग रहा था मानो रक्त धमनियों मे जम ही जाएगा उस पर आसमान मे छाए बादल सूरज का रास्ता रोके हुये थे । कई दिनों से मौसम का यही हाल था , लोग घरों मे दुबके हुये थे ।   
ननहकू ने कई जगह काम की तलाश की लेकिन नाकाम रहा । सांझ ढले वापस आ गया बेटी बड़ी हसरत से उसकी ओर लपकी : बापू कुछ लाये लेकिन खाली हाथ देख बुझे कदमों से वापस हो ली ।
उसने बेटी को समझाया : ‘ मुझे एक बड़ी जगह काम मिला है कल से जाऊंगा , तब तुम्हारे लिए खाने को ले कर आऊँगा । तब तक तू ये प्रसाद खा । हाथ मे पकड़ा हुआ लड्डू उसको खिला दिया जो रास्ते मे मंदिर के पास से गुजरते हुये किसी ने उसे दिया था ।
बेटी खुश हो गई , कल बापू काम पर जाएंगे फिर पैसे मिलेंगे और वह खाना खा सकेगी । उसका नन्हा कोमल मन हजार सपने सँजोने लगा । और वह जाने कब कब सो गई ।
ठंड बढ़ती जा रही थी , भूखे पेट किसी को नींद भी न आ रही थी । दोनों जग रहे थे ।
रुक्मिणी धीरे से बोली , “ सो गए क्या ?
“ कहाँ रे ! एक तो ठंड ऊपर से भूख , नींद कहाँ आएगी ।”
“ क्या करोगे अगर कल भी काम न मिला तो ” रुक्मिणी ने आशंका जाहिर की ।
“ तू बुरा काहे को बोलती है ? मिल ही जाएगा ” ननहकू लापरवाही से बोला ।
“ सुनो मै सोचती हूँ कि कल से मै भी काम पर तेरे साथ चलूँगी , सोना को जमना ताई संभाल लेंगी , दोनों मिलकर कमाएंगे तो मजदूरी ज्यादा मिलेगी ।”
“ काम तो मिलने दे पहले ........” झुँझलाता सा. ननहकू बोला ।
कब उन दोनों को नींद आई पता ही न चला । अगले दिन सुबह ही रुक्मिणी नहा धोकर बच्ची को जमना ताई के पास छोड़ कर कहीं चली गई , जब ननहकू सो कर जागा तो कोई घर मे न था । उसने सोचा चलो नहा धो कर काम खोजने निकलता हूँ ।
रुक्मिणी देखने बहुत सुंदर न थी लेकिन भरा बदन और तीखे नैन नक्श के कारण वह अच्छी दिखती थी । वह कई घरों मे काम खोजने गई लेकिन उसे काम नहीं मिला वापस उलटे पाँव लौट रही थी , एक जगह बिल्डिंग निर्माण का काम चल रहा था । उसने वहाँ पर काम की की तलाश करना उचित समझा और बिल्डिंग की ओर चल दी । कई मजदूर पुरुष और महिलाएं भी काम कर रही थी उसे आशा की किरण दिखी । आगे बढ़ कर किसी से पूछा ,’ भैया यहाँ काम मिलेगा क्या ?’ उसने एक ओर इशारा कर दिया ,’ वहाँ जाकर ठेकेदार से बात कर लो । वह उधर चल दी , ठेकेदार किसी पर झल्ला रहा था । वह थोड़ा सहमी बाहर ही रुक गई । जैसे ही ठेकेदार बाहर आया वह दौड़ कर उसके पैरों पर झुक गई , “ मुझे काम दे दो साब !! मै शिकायत का मौका नहीं दूँगी , साब !! मन लगा कर काम करूंगी , बहुत मजबूर हूँ । साब मेरी बच्ची दो दिन से भूखी है । वह झिड़क कर आगे चल दिया , आ जाते है जाने कहाँ कहाँ से । वह जरूरत मंद थी उसे वहाँ उम्मीद की किरण दिखाई दे रही थी वह फिर भागी , साब रुको न साब !! मुझे बहुत जरूरत है । ठेकेदार रुका उसको ऊपर से नीचे तक देखा फिर कुटिलता से मुस्कराया बोला , ठीक है आओ ऊपर कमरे मे । वह झिझकी पररंतु उसके पास और कोई चारा ही न था उसके पीछे चल दी ऊपर कमरे मे । जब लौटी तो सकुचती सी निकलती चली गई उसकी मुट्ठी मे कुछ दस और पचास के मुड़े तुड़े नोट दबे हुये थे ।
घर पहुंच कर उसने वो पैसे अपनी बेटी के हाथ पर रख दिये , “ मेरी लाड़ो देख माई को काम मिल गया और ये है आज की मजदूरी ।”
ननहकू ने पूछा , तुझे काम कहाँ मिला रे !   एक बिल्डिंग मे काम किया था । उसने अनमने भाव से उत्तर दिया । ननहकू खुशी से बोला  तो कल भी जाएगी न वहाँ , मै भी तेरे संग चलूँगा शायद मुझे भी काम मिल जाए ।
रुक्मिणी की आँखों से झर झर आँसू बहने लगे जिसे देख कर ननहकू सकपका गया । उसने ठेकेदार की कहानी सुनाई किस तरह उसने मदद की । और इतना ही नहीं उसे अपने घर के काम काज के लिए रखा और ननहकू को बिल्डिंग मे काम के लिये कल से बुलाया है एक दिन का एडवांस उसी का है । घर पर उसकी बूढ़ी माँ और एक छोटी बच्ची है जिसकी देखभाल के लिए कोई नहीं है। उसकी पत्नी का कई वर्ष पहले देहांत हो गया है , ठेकेदार खुद दिन भर काम पर रहता है उन्ही दोनों कि देखभाल करनी है पगार भी अच्छी ही देगा । 
सच आज के जमाने को देखते हुए मै तो डर ही गई थी कि कहीं ये भी वैसा ही तो नहीं लेकिन वह तो देवता आदमी है । उसको भगवान लंबी उम्र दे ।




Wednesday 3 July 2013

बोझ



दो दिनों की  मूसलाधार बारिश ने गंगा को अपने पूरे यौवन पर ला दिया था ।  जोशीली लहरें तट को काट कर बहा ले जाना चाहती थीं । कच्चे तट तो कट कर पता नहीं कब के बह गए थे ये पक्का वाला तट भी लहरों की भेंट चढ़ने वाला था।  उसी तट पर एक स्त्री जिसकी बड़ी बड़ी हिरनी जैसी आँखें, , छरहरी काया, गौर वर्ण व अधपके लंबे बाल जिन्हे बड़ी बेतरतीबी से गोलाकार जूड़ा जैसा बांध रखा था वो देखने मे काफी सुंदर थी, गंगा के किनारे लगे पीपल के नीचे सिकुड़ी सी बैठी थी और एकटक गंगा की लहरों को निहार रही थी । बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थी। ऐसी ही तेज बारिश मे वो सुबह से उसी जगह बैठी थी मानो कोई मूरत हो। कई बार दूर से ही लोगों ने उसे आवाज भी दी ,”बहन इधर आ जाओ छाया मे बैठ लो क्यों वहाँ भीग रही हो ।“ पर वह वह तो जैसे निशब्द हो गई थी और उसे अपने आसपास न कुछ दिखता था न कोई आवाज ही सुनाई देती थी । आखिर हार कर लोगों ने कुछ कहना ही बंद कर दिया । पूर दिन हो गया सुबह से सांझ हो गई अब अंधेरा गहराने लगा था । एक मजबूत हाथ ने लगभग घसीटते हुए उसको वहाँ से हटाया । और अंदर टीन की शेड मे लाकर बैठा दिया। चुपचाप वह वहाँ एक कोने मे जाकर बैठ गई । जिस हाथ ने उसे बारिश से बचाया वही हाथ उसने अपने सिर पर महसूस किया । उस स्त्री ने अपना घुटनो मे छुपा हुआ चेहरा उठाया और उस ओर देखने लगी । उसके सामने एक बुजुर्ग जिनकी  सलीके से ऐंठी हुई बड़ी बड़ी मूँछें, रौबीला चेहरा लंबा चौड़ा कद  झक़ सफ़ेद कुर्ता धोती पहने खड़े थे । उन्होने अपनी रौबदार आवाज मे पूंछा ,” बेटी क्या बात है? यों इस तरह तुम बारिश मे क्यों भीग रही हो लोग कह रहे थे कि तुम सुबह से यहाँ बैठी हो, कब आई किसी ने नहीं देखा ।”
वह मानो कुछ सुन ही नहीं रही थी उसका दिमाग चेतना शून्य हो गया था , निस्पंदित सी वह बैठी रही । उन बुजुर्गवार ने फिर अपना प्रश्न दोहराया । कोई उत्तर न मिला । वे वहीं उसके पास फर्श पर ही बैठ गए । उन्होने फिर से प्रश्न किया ,” बेटी क्या तुम मुझे अपना कष्ट बताना चाहोगी शायद मै तुम्हारे किसी काम आ सकूँ ।” वह उसी तरह बैठी रही, कुछ कहने को होंठ थोड़ा हिले परंतु काँप कर रह गए । वह बोल न सकी उसकी आँखों से आँसू बह निकले । वहाँ खड़े लोग कानाफूसी करने लगे लगता है बड़े दुःख की मारी है तभी अपना दुःख किसी से बता नहीं पा रही है कोई कहता कि लगता है घर से निकाल दी गई है। वे बुजुर्ग बड़े दयावान थे मनोहर लाल नाम था उनका , वे शहर मे एक गैर सरकारी स्वैच्छिक संस्था चलाते थे । उनकी संस्था का नाम देव सहायता आश्रम था जिसका संचालन उनकी पत्नी प्रभावती जी किया करती थी । उसमे कई बच्चे, बूढ़े और महिलाएँ भी रहती थी। लोग कहते थे कि देव उनके बेटे का नाम था इसी कारण मनोहर लाल जी ने अपनी संस्था का नाम देव सहायता आश्रम रखा है। वहाँ हर मुसीबत के मारे को पनाह मिलती है। प्रभावती जी बड़े स्नेह से सबको रखतीं मानो वे सब उनके अपने हों ।
किसी तरह मनोहर लाल जी ने उस स्त्री से उसका नाम पूछा । उसने अपना नाम ललिता बताया । मनोहर लाल जी कुछ आश्वस्त हुये कि उस महिला ने कुछ बोला तो सही । फिर उन्होने उसके परिवार के बारे मे और वह कहाँ की है, जानकारी चाही ताकि उसे उसके घर पहुंचा दिया जाय । परंतु परिवार के विषय मे पूंछते ही वह बेजार होकर रोने लगी । मनोहर लाल जी घबरा गए , “ ऐसा क्या कह दिया ये इस तरह रोने लगी ।” उसको हिम्मत बँधाते हुए वे बोले, “बेटी रोओ नहीं, चलो हमारे आश्रम चलो वहाँ पहले कपड़े बदल लेना कुछ खा पी लेना फिर बताना। तुम्हें रहने की जगह मिल जाएगी।” फिर उन्होने उसका हाथ पकड़ कर उठाया और पास ही बने अपने आश्रम मे ले गए । आश्रम पहुँच कर अपनी पत्नी से बोले , “ प्रभा जी लीजिये एक और बेटी लाया हूँ आपके लिए इसका नाम ललिता है और ये तब तक यही रहेगी जब तक इसका घर बार नहीं मिल जाता ।” प्रभावती जी ने मुस्कुरा कर उसका स्वागत किया , “ आओ बेटी बैठो” और उसे पहनने के लिए कुछ कपड़े दिये स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं, “आज हमारे घर एक और बेटी आई है। बेटी तुम अब अपनी माँ के पास हो अब तुम्हें दुःखी होने जरूरत नहीं है । ललिता फिर रोने लगी उसे बार बार अपनी बेटी याद आ रही थी। वह वहीं पल्लू मुंह मे ठूंस कर बैठ गई ताकि रोने की आवाज किसी को न सुनाई दे। प्रभावती जी ने उसे संभाला और ममता भरे शब्दों मे फिर बोली, “ लगता है कोई बहुत बड़ा दुःख है तुम्हारे मन मे क्या तुम अपने बच्चों को याद कर रही हो? कुछ बताना चाहोगी ?” वह चुप ही रही । प्रभावती जी ने अपनी सहायिका जेनी  को बोला , “जेनी , ललिता के खाने पीने की व्यवस्था करो । और उसे अपने साथ कमरे मे ले जाओ सुबह इससे बात करेंगे । अभी शायद इसका मन ठीक नहीं है ।” जेनी उनकी सहायिका थी वो भी मुसीबत कि मारी थी जिसे अपने आश्रम लाकर मनोहर लाल व प्रभावती ने पनाह दी थी ।
जेनी ने ललिता को कमरे मे ले जाकर बोला , “ ललिता ये मेरा कमरा है और अब से ये तुम्हारा भी है अभी तक मै यहाँ अकेली रहती थी । इस बिस्तर पर मै सोती हूँ और ये बिस्तर तुम्हारा है । तुम यहाँ बैठो मै खाने के लिए लेकर आती हूँ।” इतना कहकर वह मुड़ने लगी तभी ललिता ने उसका हाथ पकड़ लिया और सिर हिलाते हुए इशारा किया कि उसे भोजन नहीं चाहिए । जेनी बोली , “कुछ तो खाना ही पड़ेगा वरना बाबू जी व माता जी नाराज हो जाएंगे फिर वे भी नहीं खाएँगे ।” उस आश्रम मे सभी बच्चे मनोहर लाल जी को बाबू जी और प्रभावती जी को  माता जी बुलाते थे । उनका ही ऐसा आदेश था कि सभी बच्चे चाहे बड़े हो या छोटे वे उन लोगों को माता जी व बाबू जी कहें । अपने इकलौते पुत्र को खोकर उन्होने हिम्मत खो दी थी  उन्होने जीवन त्यागने का मन बना लिया था एक बच्चे ने उन्हे जीवन का पाठ पढ़ाया । उसकी मासूम सी बातों ने उनका हृदय परिवर्तन कर दिया था। उसने कहा , “ मुझे देखो मै तो अकेला हूँ मेरे माता पिता, बहन , दादी बाबा सब थे,  जलजले मे सब बह गए । मै ही अकेला बचा । भगवान ने मुझे छोड़ दिया था तीन वर्ष से मै यहीं हूँ लोगो की सेवा करता हूँ कभी खाने को मिल जाता है कभी पैसे भी मिल जाते है , जो पैसे मिल जाते है उन्हे इकट्ठा कर रहा हूँ ताकि अपनी पढ़ाई शुरू कर सकूँ ।” उसकी बातों ने उन दोनों को हिम्मत और नया जीवन जीने की  प्रेरणा दी , कि क्यों न वे एक ऐसा आश्रम बनाएँ जिसमे इस बच्चे की तरह मुसीबत के मारे लोगों को पनाह और स्नेह मिले । उनका समय भी कट जाया करेगा और वे अपना प्यार व स्नेह उन सब मे बाँट सकते हैं जिन लोगों को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है । उनके पास पैसा था घर को ही आश्रम बना लिया । सबसे पहला सदस्य वही बालक था। उसको उन्होने पढ़ाया लिखाया वो बंगलौर मे अच्छी कंपनी मे काम करने लगा  उसका ब्याह भी उन दोनों ने ही किया । उस बालक मे वे अपने बेटे देव की छवि देखा करते थे । बार बार कहते , “ ये मेरा देव ही है जो वापस हमारे पास लौट आया है ।” वह भी कहता , “पिताजी आप और माता जी नहीं होते तो मुझे नया जीवन नही मिलता । मै इस मुकाम तक नहीं पहुंचता ।”
ललिता को उस आश्रम आए दो दिन हो गए पर न वो किसी बोलती न ही किसी काम मे रुचि दिखाती। प्रभावती जी ने सोचा ऐसे कब तक चलेगा इस बच्ची से उसके घर बार के विषय मे जानना ही होगा । पता नहीं कहाँ से आयी है क्या दुःख है क्यों बच्चों की बात करते ही रो पड़ती है आखिर ऐसा क्या हुआ है उसके साथ , क्यो नहीं बताना चाहती वो ?
प्रभावती जी ने कमरे मे उसे बुला भेजा । वह आई और चुपचाप बैठ गई । माता जी ने कहना शुरू किया , “ बेटी ललिता कुछ अपने और अपने परिवार के विषय मे बताना चाहोगी ? बेझिझक होकर बताओ हम तुम्हें तुम्हारे घर पहुँचाने मे मदद करेंगे ।” वह सोचने लगी क्या बताए वह और किस घर जाएगी जब उसके पास रहने का कोई ठिकाना ही नहीं है । वह चुपचाप ही बैठी रही कुछ न बोली । जेनी पास ही खड़ी थी उसने कहा, “ललिता, माता जी की बात का उत्तर दो ।” ललिता ने सोचा, “मन की व्यथा कह देती हूँ नहीं तो यों ही कुढ़ती रहूँगी शायद ये लोग मेरी बेटी को ढूँढने मे मेरी मदद कर दें ।”  
उसने लंबी सांस भरी और कहने लगी , “ माता जी मेरा भी भरा पूरा परिवार था पति रेलवे मे थे और दिल्ली मे तैनात थे ,  दो बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी , बड़ी अच्छी तरह हमारी गृहस्थी चल रही थी, पहले मै गाँव मे सास के साथ रहती थी फिर सास ने मुझे पति के साथ शहर भेज दिया कि बेटे को खाने पीने की तकलीफ होती होगी। मुझे भी शहर आकर अच्छा लगा हालांकि शहर मे हर चीज मंहगी थी फिर भी हम उनकी छोटी तंख्वाह मे भी पूरा कर ही लेते। उनका सपना था बच्चे खूब पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी मे लग जाएँ उन्होने बेटे और बेटी मे कोई अंतर नहीं किया। वो कहते हम कमाते क्यों हैं ताकि हमारे बच्चे अच्छे ओहदों पर काम करें । एक दिन सास का देहांत हो गया अब गाँव मे अपना कहने को कोई न था।” माता जी ने पूछा, “क्या तुम्हारे और कोई रिश्तेदार नहीं हैं कोई ननद , देवर या जेठ ।” थोड़ी देर रुकी आंखो से सैलाब बह निकला फिर बोली , “ दो ननद है उनका ब्याह हो गया है वो अपनी ससुराल मे है, हमारे पति इकलौते थे मेरी सुंदरता के कारण वे मुझे कहीं अकेले न जाने देते, बाजार हाट काम वो खुद ही करते , एक दिन अचानक तूफान आया सरोजनी नगर मार्केट मे कुछ समान लेने गए थे वहाँ आतंकियों ने बम बिस्फोट कर दिया  बहुत लोग मारे गए मेरे पति भी ........ ” कह कर वह फूट कर रो पड़ी । माता जी ने उसे हिम्मत बंधाई सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं , “ मत रो बेटी जो हुआ बड़ा बुरा था, उस समय तुम्हारे बच्चे कितने बड़े थे ।” “बेटी बारह साल की और बेटा आठ का” उसने उत्तर दिया । मै पढ़ी लिखी भी नहीं थी जो मुझे नौकरी मिल जाती मैने वहीं आसपास के घरों मे काम तलाशना शुरू किया किसी तरह  दो घरों मे काम मिला । आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया था न उससे घर का खर्च निकाल पाता, न किराया और न ही बच्चो की फीस पूरी हो पा रही थी। दिन ब दिन हालत बदतर होते जा रहे थे । किराया न दे पाने के कारण मालिक ने घर से निकाल दिया अब और समस्या खड़ी हो गई । कहाँ जाऊँ किससे मदद की गुहार लगाउ समझ न आ रहा था ।” माता जी ने फिर कहा , “ तुम अपनी ननदों के घर नहीं गई या उन्होने सहारा नहीं दिया ।” उसने उत्तर दिया , “ माता जी वे सब अपने घर द्वार वाली है उन्होने थोड़ी बहुत मदद की लेकिन पूरी ज़िंदगी की ज़िम्मेदारी कौन उठाता है और ऐसे समय मे सब बेगाने हो जाते है चाहे कोई भी हो ।  अपनी गृहस्थी की ज़िम्मेदारी मेरी ही थी मुझे उठानी थी मै दिल्ली छोड़ कर मुरादाबाद बच्चों के साथ आ गई वहाँ मेरे भाई थे सोचा भाई थोड़ी सहायता कर देंगे तो कोई छोटा मोटा काम कर लूँगी बड़े भैया ने कहा “कलकत्ता चली जाओ वहाँ मेरे एक मित्र हैं उनके घर मे खाना बनाने से लेकर सारा काम है और वो रुपये भी दो हजार देंगे ।” उन्होने टिकट का इंतजाम कर दिया मैंने कहा, “भैया यदि कुछ दिन बेटी को आप अपने पास रख लेते तो ... क्योंकि जमाना कैसा है आप तो जानते ही हो , भाभी ने कहा , “नहीं भाई हमारे घर मे भी बड़े बड़े लड़के हैं और हम किसी की बेटी ज़िम्मेदारी नहीं उठा सकते कोई उंच नीच हो गई तो जवाब कौन देगा न बाबा न।”  मै अपने दोनों बच्चों के साथ कलकत्ता के लिए चल दी वहाँ पहुच कर जो नंबर भैया ने दिया था वहाँ फोन किया उन्होने बताया कैसे मै उनके घर पहुँच सकती हूँ । वहाँ पर पता चला कि उनकी पत्नी गर्भवती थी उन्हे फुल टाइम बाई चाहिए थी, मैंने कहा मेरे दो छोटे बच्चे है पूरा समय तो नहीं दे पाऊँगी।” उन्होने कहा, सोच लो फिर आ जाना ।” “मैने एक झोपड़ पट्टी मे शरण ली । वहाँ लोग काफी अच्छे थे उन्होने कहा वे बच्चे देख लिया करेंगे । मैंने काम शुरू कर दिया । अब बच्चे स्कूल जाने की जिद करने लगे । बेटी तो समझदार थी वह बेटे को भी समझाती , एक दिन उसने कहा, “ माँ बिट्टू का एडमिशन करवा दो मेरा बाद मे करा देना।” लोगो ने समझाया बेटी सही कह रही है बेटा तो जीवन का सहारा होता है और बेटी बोझ होती है । मैंने कहा , “ नहीं दोनों बराबर पढ़ेंगे उनके पिता ने कभी भी दोनों मे भेदभाव नहीं किया , जब एडमिशन कराने गई तो फीस की रकम सुन कर चकरा गई सोचा चलो अभी बिट्टू का नाम लिखा दूँ इसका पढना ज्यादा जरूरी है । यहाँ मैंने पहली गलती की । आमदनी न बढ़ी और न मै बेटी की पढ़ाई शुरू करा पाई। बस्ती महिलाए कहती इसे भी काम पर लगा ले कुछ अधिक पैसे मिलेंगे जिससे तेरा बेटा तो अच्छा पढ़ लिख जाएगा । मुझे भी बात जंच गई उसे काम पर लगाने के लिए साथ ले गई यहाँ मैंने दूसरी गलती की , मालिक ने उसको काम पर रखने साफ इंकार कर दिया क्योंकि वहाँ बच्चे काम पर लगाने पर जुर्माना पड़ता था । मुझसे गृहस्थी का खर्च उठाए नही उठ रहा था । बेटी भी बड़ी होने लगी थी सारा दिन घर पर खाली रहती घर के काम- काज से फुर्सत होते ही वह वह कुछ काम की तलाश मे निकल पड़ती परंतु उसे कहीं काम न मिलता । मेरा दिल रो उठता कि कहाँ मेरी बेटी पढ़ लिख कर डाक्टर बनाना चाहती थी कहाँ बेचारी दर बदर की ठोकरे खाती फिर रही है, एक दिन वह रात तक वापस न आयी, पूरी रात आँखों मे कटी सुबह होते ही मै मालिक के पास गई , “ साहब मेरी बेटी कल से घर नहीं आयी , साहब ढूँढने मे कुछ मदद कर दीजिये । उन्होने पुलिस मे रिपोर्ट करा दी उसका फोटो भी जमा हो गया । झोपड़ पट्टी वाले सबने कहा, “अच्छ ही है तुम्हारा बोझ खत्म हो गया । रिपोर्ट तो लिखा ही दी है लड़की को पुलिस ढूंढ ही लाएगी न भी मिली तो क्या फर्क पड़ता है बड़ी हो रही थी कोई ऊंच नीच हो जाती कलंक लगता सो अलग तू बेचारी विधवा कहाँ जाती और फिर चल मान ले कि कुछ नहीं होता तो उसकी शादी का खर्च कहाँ से लाती ।” मन भी बड़ा पापी होता है माता जी ये पाप कर बैठा , “सोचा कि बेटा तो साथ है ही, सही भी है बेटी शादी का खर्च कहाँ से लाती ।” मन के पाप के कारण सोच तो लिया पर बेटी का मासूम चेहरा उसकी भोली भाली आंखो ने कभी चैन न लेने दिया । बेटा बड़ा हो गया था परदेस चला गया नौकरी करने वहीं कोई लड़की पसंद आ गई उसने शादी भी कर ली बाद मे खबर  दी । मै जिन मालिक के घर काम करती थी उनके घर अब मै घर के सदस्य की तरह हो गई थी उन्होने हार नहीं मानी उनकी बड़ी कृपा रही मुझ पर , वो पुलिस से पूंछ आया करते थे कि पुलिस की क्या कोशिश चल रही है इतना समय हो गया है एक लड़की नहीं ढूंढ पाये। उन्होने ऊपर तक बात की । एक दिन खबर आई कि जिस लड़की का फोटो उनके पास है उससे मिलती जुलती लड़की को बनारस मे देखा गया है । मालिक के साथ मै व पुलिस के कुछ आदमी भी बनारस आये । कई दिन तक खोजने के बाद भी जब कोई हल न निकला तो मैंने मालिक के पाँव पकड़ लिए । मालिक अब आप जाओ वहाँ मालकिन भी अकेली हैं मै यहाँ रह कर खुद ही ढूंढ लूँगी और तब से मै यहीं हूँ । बेटी भी अब बड़ी हो गई होगी पता नहीं कहाँ होगी ।”
माता जी ने कहा , “ क्या तुम्हारे पास उसका कोई फोटो है ।” वह बोली, “ है तो वही बारह साल वाला” और कमर मे खुसा हुआ मुड़ा तुड़ा सा फोटो पकड़ा दिया । उन्होने फोटो मनोहर लाल जी को दिया , “ क्या हम इस फोटो से बच्ची को ढूंढ पाएंगे ।” मनोहर लाल जी बोले , “ प्रयास तो कर ही सकते है ।” उन्होने उस फोटो के पोस्टर बनवाए और नीचे लिखवा दिया ,ये फोटो इस बच्ची के बचपन का है जो भी इस बच्ची को जानता हो या कभी मिला हो वह इस पते पर संपर्क करे,  नीचे अपना पता दे दिया । पोस्टर पूरे शहर की दीवारों पर चस्पा करवा दिये । 
एक दिन एक सुंदर सी लड़की एक वृदधा के साथ आयी उसने अपना नाम सुलक्षणा बताया । बोली अपने बचपन की फोटो दीवारों पर देख मुझे हैरानी हुई कि ये फोटो आपको कहाँ से मिली । प्रभावती जी ने पूछा , “ये तुम्हारे साथ कौन है? वह बोली- “ मेरी माँ हैं। वे हैरान सी उसका मुंह देखने लगीं , “ ये इसकी माँ है तो ललिता इसकी कौन हैं ?” उन्होने फिर कहा , “ बेटी तुम कहीं बाहर से आई हो ।” वह बोली , जी नहीं जब से होश संभाला है इनको ही अपनी माँ के रूप मे देखा है ये न होती तो मै भी न होती ।” फिर वे उस वृदधा की ओर मुखातिब हुईं , “ बहन जी आप इस बच्ची की सगी माँ है । वे मुस्कराते हुए बोलीं , “ सगा और सौतेला कुछ भी नहीं होता बहन मै ही इसकी माँ हूँ और ये मेरी ही बेटी है ।”     
प्रभावती जी ने उनको सुलक्षणा के बचपन का फोटो दिखाया और पूंछा की ये फोटो कहाँ की है बता सकती हैं आप । तब उस वृदधा ने बेटी को बाहर भेज दिया और कहने लगीं  , “ एक दिन मै किसी काम से कलकत्ता गई थी वहाँ ये लड़की लोगों से भीख की तरह काम मांग रही थी । उस समय मै जल्दी मे थी निकल गई वापस लौटी तो ये लड़की कड़ी धूप मे शायद चक्कर खा कर गिर गई होगी सड़क पर पड़ी थी लोगों ने घेर रखा था परंतु उसे उठा कर इसके घर पंहुचाने कि जहमत कोई नहीं उठाना चाहता था । मैंने गाड़ी रोकी उन लोगों से मेरी इस बात को लेकर झड़प भी हुई किन्तु सभी मुंह फेर कर चल दिये । मै इस बच्ची को हास्पिटल ले गयी वहाँ डाक्टर्स ने कहा एक दिन रखना पड़ेगा क्योकि बच्ची काफी कमजोर है, लगता है कई दिनो से ठीक से खाना नहीं खाया, ग्लूकोज चढाना पड़ेगा । मैंने कहा ठीक है जो भी करना है जल्दी कीजिये। इसे इसके घर छोड़ दूँ फिर मै वापस बनारस लौटूगी । दूसरे दिन बच्ची को होश आया माँ को ढूँढने लगी। तब मैंने बताया कल तुम सड़क पर बेहोश मिली थीं । तुम्हे मै ही यहाँ लेकर आयी हूँ । तुम अपने घर का पता बताओ तुम्हें छोड़ दूँ फिर मै वापस जाऊं।” वह बोली , “ माँ जी आप मुझे किसी काम पे रख लो मै पढ़ना चाहती हूँ मेरी माँ काम कर के जो पैसे लाती है उससे घर का खर्च और बिट्टू की पढ़ाई ही बड़ी मुश्किल से हो पाती है ।” मैंने कहा , “ पर मै तो यहाँ नहीं रहती मै बनारस से आई हूँ । वह मायूस हो गई । मुझे लगा वह सच मे पढ़ना चाहती है मै उसे अपने साथ ले आई और अब वह मेरी बेटी है, उसकी हर खुशी मेरी खुशी है । क्योकि मेरे अपने कोई बच्चे नहीं है। इसने मेरे जीवन की कमी को पूरा किया है।”
प्रभावती जी ने कहा , “ लेकिन इसकी अपनी माँ भी इसे खोजती हुई यहाँ आई है कल उसे मेरे पति गंगा के किनारे से लेकर आए है । अभी बुलवा देती हूँ । ” उन्होने टेबल पर रखी घंटी बजाई । जेनी अंदर आई ,  “जेनी जाओ जरा ललिता को बुला लाओ ,” वह बोली , “जी माता जी ।” और ललिता को बुलाने चली गई ।
सफेद साड़ी मे लिपटी ललिता वहाँ आकर खड़ी हो गई । माता जी ने कहा , “ यह तुमसे मिलना चाहती है ।” “ जी बताइये” बोल कर चुपचाप खड़ी हो गई । उस वृद्ध स्त्री ने उसकी ओर देखा वह अब भी काफी सुंदर थी । वे मुस्करा कर बोली, “ ललिता मेरा नाम कमला कुलपति है मै यहीं की रहने वाली हूँ और गर्ल्स डिग्री कालेज मे प्रोफेसर हूँ एक बेटी भी है मेरी , तुम मिलना चाहोगी।” ललिता ने सोचा मुझे क्या करना है , मुझे तो मेरी बेटी मिल जाए बस । तब तक सुलक्षणा अंदर आई । वह अपनी माँ को पहचान गई लेकिन ललिता उसे नहीं पहचान पाई , वह बड़ी हो गई थी और उसकी बचपन वाली बेटी से बिलकुल अलग थी । सुलक्षणा दौड़ कर माँ के गले से लिपट गई , “माँ तुमने मुझे ढूंढा नहीं ।” बहुत ढूंढा मेरी बच्ची , फिर जब नहीं मिली तो मन को समझा लिया । क्या कहूँ तुझे कि तेरी अपनी माँ ने ही तुझे बोझ मान लिया था मन का पाप था , मुझे माफ कर दे मेरी बच्ची।” सुलक्षणा ने कहा , “ नहीं माँ नहीं ऐसा मत कहो, तुम्हें मै एक दूसरी माँ से मिलाती हूँ जिन्होने मेरी मदद की और मुझे पढ़ाया लिखाया अपने साथ यहाँ ले आई मेरे लिए तो वे किसी फरिश्ते से कम नहीं है ।” कहकर वह कमला जी की ओर मुड़ी , “ माँ देखिये ये मेरी माँ हैं , जिन्होने मुझे जन्म दिया है । मै कितनी खुश नसीब हूँ मेरी दो माँए  हैं ।” कमला जी ने कहा , ललिता तुम भी हमारे साथ चलो मै तो एकदम अकेली रहती थी तुम्हारी बेटी ने मेरे घर को पूरा किया मुझे माँ का सम्मान दिया और अब तुम्हारे रूप मे एक बहन भी मिल जाएगी ।” ललिता ने सर झुका लिया कुछ बोल न पाई ,आँसू निकल पड़े । उनके प्यार  से उसका दिल भर आया । सुलक्षणा ने कहा, “चलो माँ हम सब साथ रहेंगे।” वह बोली , “ कहाँ ले जाएगी बेटी मुझ बोझ को , मुझे यहीं रहने दे तू इनके साथ खुशी से रह ।” सुलक्षणा ने कहा , “माँ तुम ये क्या कह रही हो, भला माँ भी कभी किसी बच्चे के लिए बोझ होती है । नहीं माँ अब तुम्हें मेरे साथ ही चलना पड़ेगा अब मै भी नौकरी करने लगी हूँ । मुझे सेवा का अवसर न दोगी ।” ललिता सोचने लगी कि मै भी कितनी अधम हूँ जिसने बेटी को बोझ समझने की गलती की । जबकि सच तो ये है कि बेटियाँ ही सच्चा सहारा होती हैं ।” ललिता सभी को कृतज्ञता से प्रणाम कर उन दोनों के साथ चल दी ।      

Monday 3 June 2013

चुल्लू भर पानी ( लघु कथा )

चिलचिलाती धूप मे भी तेरह –चौदह वर्षीय किशोर सिर पर मलबे से भरी टोकरी उठाए बहुमंज़िली इमारत से नीचे उतर रहा था । उतरते उतरते उसे चक्कर आने लगा उसने सुबह से कुछ खाया नहीं था । उसके घर मे कोई बनाने वाला नहीं था , उसकी माँ बहुत बीमार थी उसके लिए दवा का बंदोबस्त जो करना था उसी के वास्ते वह काम करने आया था । चक्कर आने पर वह वहीं सीढियों पर दीवाल से सिर टिका कर बैठ गया । ठेकेदार उधर से चला आ रहा था उसे बैठे देख गरजा – “ अबे ओ! कामचोर कहीं के ! जरा सा काम किया नहीं कि बैठ गए मुंह लटका कर ।“ वह धीरे से बोला –“साहब दो घूंट पानी” फिर से वहीं ढेर हो गया । ठेकेदार ने जोर की लात उसके सिर पर मारी, वह लड़खड़ाता हुआ सीढ़ियों से नीचे जा गिरा । उसके सिर व मुंह से खून निकल पड़ा था । ठेकेदार गुर्राया -“जा मर चुल्लू भर पानी मे , एक ढेला भी नहीं मिलेगा तुझे ।“ वह धीरे से बोला –“ साहब दो घूंट पीने को नहीं है , मरने को चुल्लू भर कहाँ से दोगे ?” सभी उसका मुंह ताकते रह गए । कितनी सटीक चोट मारी थी किशोर ने । 


Thursday 30 May 2013

वो मूक नहीं



राम चरण डंडे से लगातार अपनी गाय को पीट रहा था और गाय थी कि टस से मस नहीं हो रही थी वो अपनी जगह ही खड़ी थी, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसका बछड़ा तेजी से कूद रहा था मानो कह रहा हो मत मारो मेरी माँ को ऐ दुष्ट इंसान । एक बार मुझे इंसान बनने दे सारी कसर पूरी कर कर लूँगा ।”
पास खड़े राम चरण के माता पिता ज़ोर ज़ोर चिल्लाये जा रहे थे ,”का गइया के मारि ही डरिहै का रे।
“हाँ अम्मा आज एहिका मारि डरिहौ ।” खीझते हुये राम चरण बोला । उसको सुबह साहब के बंगले पर दूध लेकर जाना होता था। थोड़ी भी देर होने पर साहब बिगड़ जाते, “कामचोर कहीं के! तुम सब होते ही गंदी नाली के कीड़े हो । तुम्हें समय पर दूध लाने के लिए और अपनी गायों की देखभाल के लिए रखा है और इन साहब को देखो आए दिन बच्चे बिना दूध पिये ही स्कूल चले जाते है ।”
राम चरण को साहब ने अपने फार्म हाउस की देखभाल के लिए रखा था , एक दिन मेम साहिबा के कहने पर  – “अपना फार्म हाउस है और ये वहाँ रहता ही है क्यों न हम कुछ गायें वहाँ रख दें ये गाँव का लड़का है अच्छी तरह देखभाल कर लेगा, और हमारे बच्चों को ताजा घर का दूध भी मिल जाएगा।” साहब को मेम साहिबा की बात जँच गई और उन्होने दो जर्सी गायें रख दीं । गाये खूब दूध देती थी शुरू शुरू मे साहब खुद आए ताकि देख सकें गायें दूध कितना देती हैं । उन्होने राम चरण से पूछा  , “रामू तुम्हारे परिवार मे कौन कौन हैं?” रामू बोला ,’साहब हमरे घर मा माई, बापू, जोरू और एक बिटिया है ।“ साहब बोले ,’ क्यों न अपने परिवार को यहाँ ले आओ तुम्हारा काम भी हल्का हो जाएगा, और आए दिन तुम्हें छुट्टी भी नहीं लेनी पड़ेगी ।“  राम चरण को साहब की बात जंच गयी और वह खुशी खुशी अपने परिवार को ले आया । उसके पिता गोकरन गायों की खूब सेवा करते मानों वे उनकी अपनी ही गायें हों । माँ जनक दुलारी फार्म हाउस मे झाड़ू बुहारू कर दिया करती थीं, पत्नी ने घर संभाल लिया था । सब कुछ सुचारु रूप से चलने लगा । वह सुबह तड़के  उठकर गायों का दूध निकालता और छः बजने से पहले पहुँच जाता साहब के बंगले पर । साहब की बड़ी सी बेकरी थी कई लोग उसमे काम करते थे साहब ने उसे वही काम पर लगा दिया । उसका काम था फैक्ट्री मे निर्मित चीजों को दुकान तक पंहुचाना । रोज वह उनकी सभी दुकानों पर सामान डिलीवर करता था और हिसाब लेकर साहब तक पहुचा देता। वह बड़ी ईमानदारी से अपना करता था। पर गरीब की दुनिया मे हमेशा सब कुछ ठीक नहीं चलता। एक हिस्सेदार ने कई दिनो से पैसे नहीं दिये थे। उसने साहब से कहा,” जुबेर पैसे नहीं दे रहा है.” साहब ने कहा ,” जुबेर को तुरंत बुला लाओ अभी पैसा वसूलता हूँ ।” जुबेर को साहब की अदालत मे हाजिर किया गया। साहब काफी गुस्से मे थे बिफर पड़े , “शाम तक सारा पैसा जमा करा नहीं तो कल से तुझे दुकान से छुट्टी, तू जितने भी गोरख धंधे कर रहा है न, सब मुझे पता है कल तू दुकान मे कदम तभी रखेगा जब पूरा पैसा जमा कर देगा ।” इसके साथ उसे वहाँ से भगा दिया । जुबेर मन ही मन भुनभुनाता हुआ चल दिया । साहब ने रामचरण को बुलाया और दुकान की ज़िम्मेदारी उसे सौंप दी । जुबेर यह सब देख खिसिया गया उसने मन ही मन उसको सबक सिखाने की सोंची ।
रात को छुट्टी के बाद जब राम चरण घर को चला तब थोड़ी ही दूर पर दो लड़कों के साथ जुबेर ने उसे घेर लिया । जुबेर बोला, तोड़ दो इसके हाथ पाँव बहुत चमचागीरी करता है स्साला! अब देखता हूँ कैसे जाएगा दुकान ।“ और सभी ने उसको पीटना शुरू कर दिया। बेहिसाब पीटने से रामचरण की कई हड्डियाँ टूट गई और सिर पर गहरा घाव हो गया अधिक खून बह जाने से वह बेहोश हो गया ।  पूरी रात बीत गई घर मे पत्नी और माँ बापू इंतजार के  करते करते सुबह हो गई । परंतु राम चरण न आया । गोकरन खुद ही दूध लेकर साहब के बंगले गया और सारी बात साहब को बताई । साहब ने उसे खोजने के लिए अपने आदमी भेजे और पुलिस को भी  इत्तिला कर दी उसकी खोज जल्द ही की जा सके । पूरा दिन खोजने के बाद पुलिस को झड़ियों मे एक लावारिस लाश मिली । उसे देखते ही गोकरन गश खाकर गिर पड़े । वह कोई और नहीं रामचरण ही था । गोकरन फार्म हाउस पर बेटे का शव लेकर पहुंचे । उससे लिपट कर माँ अपनी सुध बुध खो बैठी , पत्नी का बुरा हाल था वह बेचारी कभी अपनी चूड़ियों से भरी कलाई को देखती जिसे अभी परसों ही पहन कर आई थी जिसे राम चरण ने अनायास ही चूमते हुये कहा था ,” कईसी नीकी लागि रही हैं” , कभी अपनी दो वर्ष की बेटी को देखती  जिसके लिए न जाने कितने सपने बुने थे, हाय ! कैसे जीवन जिएगी अब।
कोने मे खड़ी गाय के आँख से आँसू उसी तरह बह रहे थे जैसे एक दिन पहले बह रहे थे बार बार रँभाती वो कहती ,”मै मूक नहीं।” उसका बछड़ा उसी तरह कूद रहा था जैसे एक दिन पहले । उसकी भाषा किसी की समझ से बाहर थी ।           

Monday 20 May 2013

तुम सा गर हो साथी


रौनक दौड़ता हुआ आया और माँ को पकड़ कर गोल गोल घूमता हुआ बोला ,“माँ मै पास हो गया ! माँ तेरा बेटा आई ए एस बन गया । माँ आज पापा जरूर खुश हो जाएंगे वो हमेशा मुझसे नाराज रहते है , कि मै नालायक हूँ कुछ कर नहीं सकता ।“
“हाँ हाँ बेटा जरूर , तुमने आज खुशी ही ऐसी दी है ।“ सुमन जी खुशी से लरजते हुए बोलीं। “ बेटा तुमने आज हमारा जीवन सफल कर दिया ।“ उनकी आँखों से खुशी के आँसू निकल पड़े। आज उनका सपना साकार हो गया था । बस उन्होने यही चाहा था कि रौनक आई ए एस आफिसर बन जाय । रौनक सुमन और निखिलेश का इकलौता बेटा था । निखिलेश मल्टीनेशनल कंपनी मे एक्ज़ीक्यूटिव थे और अधिक तर विदेशों मे रहते थे इसलिए घर को समय नहीं दे पाते थे ,पर वो ये जानते थे की सुमन कैसी भी परिस्थिति को बड़ी कुशलता से संभाल लेती है । सुमन भी एक बालिका विद्यालय मे प्रधानाचार्या के पद पर कार्यरत थीं । रौनक के बाद उनकी दूसरी संतान नहीं हुई । रौनक पढ़ने मे बहुत तेज था लेकिन साथ ही बहुत शैतान भी  था। अपनी शैतानियों के बीच भी वो पढ़ने का समय निकाल लिया करता था । कक्षा मे हमेशा अव्वल आता था । एक बार अपने फाइनल एक्जाम के समय वो बीमार पड़ गया और परीक्षा नहीं दे पाया , और बहुत रोया , टीचर को उसकी परीक्षा लेनी ही पड़ी । ऐसा ही था वो कभी हार न मानने वाला । अपनी शरारतों के बावजूद अध्यापकों मे लोकप्रिय था ।
 आज उसकी मेहनत रंग लाई थी अपने मम्मी पापा का सपना पूरा किया था । रौनक के मित्र का फोन आ गया वह उसके साथ व्यस्त हो गया । निखिलेश उस समय इंडिया से बाहर थे, सुमन जी ने उन्हे फोन पर सूचना दी ,” सुनिए आज आपके बेटे ने कर दिखाया , आप नाहक ही कोसते रहते थे ।“ निखिलेश जी बोले, “ठीक है आज उसी का नतीजा सामने आया न ।” वे बोली ,”जी अब कब तक आ रहे हैं आप।“ “बस अभी लो ! तुम बस बाहर आकर गेट खोलो" निखिलेश ने चुटकी ली । “ अरे! क्या कह रहे है” सुमन जी अचंभित सी बोलीं । वे बोले, “बाहर आओ भी” सुमन दौड़ती हुई सी गेट की ओर भागी । सचमुच निखिलेश बाहर खड़े थे ।
अंदर आकर ज़ोर से कड़कती हुई आवाज मे बोले,” रौनक, मित्र मंडली से फुर्सत हुई हो तो नीचे आ जाओ ।“ रौनक किसी से फोन पर बात कर रहा था उसके हाथ से फोन छूटते बचा,” अरे पापा ! पापा आ गए।“ भागता हुआ आया। निखिलेश जी बड़ी गहन मुद्रा मे सोफ़े पर बैठे थे । सुमन जी चाय बना रहीं थी और सिर नीचे झुकाये थीं ।
 उसने सोचा ,” मारे गए पापा तो गुस्से मे लग रहे है।”
निखिलेश जी दुबारा बोले,” क्यों बरखुरदार क्या गुल खिलाये इस बार , पास वास हुए कि नहीं।”
खुशी से उछलते हुये रौनक पापा के पास पहुंचा ,” जी पापा इंडिया मे दसवां स्थान है ।“
 “अच्छा बता तो ऐसे रहे हो जैसे पहला स्थान मिला है ,” चेहरे पर आ रही हंसी को रोकते हुए निखिलेश जी बोले। इसी के साथ सुमन जी हंस पड़ीं।
“अब तो पार्टी होनी चाहिए” निखिलेश ने कहा । सुमन जी ने भी स्वीकृति दे दी । पर रौनक बोला ,” पापा !  इफ यू डोंट माइंड , मेरी ज्वाइनिंग के बाद पार्टी कर लेते है प्लीज़।“
 निखिलेश अचंभे से उसको देखने लगे, “ क्या ये हमारा ही रौनक है सुमन ! “
"जी पापा बिलकुल आपका ही रौनक है, बस पार्टी बाद मे दीजिएगा ।“
कुछ समय बाद उसकी ज्वाइनिंग हो गई और निखिलेश जी ने शानदार पार्टी दी । शहर के बड़े और नामी गिरामी लोगों ने शिरकत की ।
 सेठ आलोक नाथ जी शहर के सबसे बड़े वस्त्र व्यापारी थे। उनकी इकलौती बेटी थी शैलजा विदेश मे रह कर डाक्टरी पढ़ रही थी। आलोक नाथ जी ने निखिलेश जी से उसके रिश्ते की बात चलाई । निखिलेश जी को कोई एतराज न था पर उन्होने बेटे की इच्छा जानना जरूरी समझा । उन्होने आलोक नाथजी से कहा,” भाई हमे तो कोई आपत्ति नहीं है पर हम चाहते है कि दोनों बच्चे एक दूसरे को देख ले समझ लें तभी ठीक रहेगा ।"
“ हाँ हाँ !! क्यों नहीं? आज हमारा आपका जमाना थोड़े ही रहा । अगले हफ्ते शैलजा इंडिया आ रही है उसकी पढ़ाई पूरी हो गई है । आप तभी कोई सही मौका देख ये काम करा लीजिये,“ आलोक नाथ जी बोले ।
सुमन जी सोचने लगीं ,” कहीं ऐसा न हो जल्दबाज़ी मे हम कोई गलत निर्णय ले बैठें।“
अगले हफ्ते शैलजा इंडिया आ गई । आलोक नाथ जी ने देखने का कार्यक्रम अपने घर पर ही रखा । शैलजा ने ही अपने घर मे मेहमानों की आवभगत की बागडोर संभाल रखी थी । क्योंकि शैलजा की माँ नहीं थीं । कुछ औपचारिक बातों के बाद निखिलेश जी ने आलोक जी से बोले ,”भाई अब हम बूढ़े बैठ कर बातें करते हैं और बच्चों को अकेले थोड़ी देर एक दूसरे को समझने का मौका दिया जाय ,क्यों आलोक आपका क्या ख्याल है?”
  जी बिलकुल ” आलोक जी ने कहा ।
शैलजा और रौनक बाहर बगीचे मे जाकर बैठ गए । शैलजा ने पूछा ,”आपका अभी अभी प्रशासनिक सेवा मे चयन हुआ है किस शहर मे नियुक्त हुये है ।” रौनक शैलजा के शुद्ध हिन्दी मे बात करने से काफी प्रभावित हुआ बोला ,”कानपुर मे । आपकी हिन्दी तो बहुत अच्छी है ।“
शैलजा ने कहा, “धन्यवाद , हिंदुस्तानी हूँ हिन्दी तो अच्छी होनी ही चाहिए, वैसे भी मै दिखावे की ज़िंदगी और तौर तरीकों को कम पसंद करती हूँ।“
“ओह ! गुड , आपकी पढ़ाई भी अब खत्म हो गयी है आपका क्या इरादा है यहाँ इंडिया मे रहेंगी या फिर वापस लौट जाएंगी“ रौनक ने पूछा ।
शैलजा ने कहना शुरू किया,” मैंने डाक्टरी की पढ़ाई विदेश मे रह कर अधिक धन कमाने के लिए नही की है । मुझे अपने देश मे रह कर उन लोगों के लिए कुछ करना है एक ऐसा उच्चस्तरीय अस्पताल बनाना है जहां हर तबके के लोगों का इलाज हो खास कर उन लोगों का जो किसी कारण वश इलाज के अभाव मे या तो दम तोड़ देते हैं या कई बार ऐसा भी होता है पैसे की कोई कमी नहीं होती लेकिन उचित और उच्चस्तरीय सुविधायें न मिल पाने के कारण भी मरीजों को बचाया नहीं जा पाता है।"
 "बहुत ही अच्छा ख्याल है आपका , इससे काफी लोगों का भला होगा" रौनक प्रभावित होते हुए बोला । शैलजा ने गहरी सांस ली फिर कुछ  सोच कर उसकी अंखे भर आयीं ।
रौनक ने कहा ," कोई बात है आप अगर मुझे बताना चाहे तो बता दें ।"
 शैलजा ने खुद को संयत किया और बोली,"  मुझे आज भी वो दिन याद है जब मेरी माँ मुझे छोड़ कर चली गईं थीं सदा के लिए, उनकी मौत कैंसर से हुई थी। पापा के पास पैसे की कोई कमी नहीं है फिर भी हम माँ को बचा नहीं पाये। उच्च्स्तरीय इलाज के लिए डाक्टर्स ने उन्हे विदेश ले जाने को कहा क्योंकि वहाँ पर उनका इलाज संभव था लेकिन जब तक हम उन्हे ले जा पाते वे ही चल दीं थीं । उनका दर्द उनका छटपटाना जब याद आता है तो मन मे ये इच्छा और बलवती हो जाती है कि इलाज के बिना अब कोई माँ अपने बच्चों से न रूठे । इसलिए मैंने डाक्टरी पढ़ी है और अब यहाँ ही अस्पताल खोलूँगी जिसमे सभी सुविधायें होंगी हर संभव इलाज मुहैया कराया जा सके इस बात का पूरा ख्याल रखा जाएगा ।  जिससे पापा भी खुश रहेगे और मुझे भी संतुष्टि रहेगी कि पापा अकेले नहीं है। इसलिए मै ऐसे लड़के से ही शादी करना चाहती हूँ जो मेरा साथ दे मेरी भावनाओं को समझे । " रौनक शैलजा की बातों से बेहद प्रभावित हुआ पर उसने शैलजा से कुछ कहा नहीं। धीरे से उठा और बोला, "चलिये अब काफी देर हो गई है मां पापा इंतजार कर रहे होंगे।" उसके इस तरह उठ आने को शैलजा ने नकारात्मक उत्तर समझा। अंदर आने पर सुमन जी ने आँखों से इशारे ही इशारे मे पूछ लिया। उसने हाँ मे सिर हिला दिया , खुशी से निखिलेश जी ने आलोक जी को गले लगाया बोले ,"भाई अब तो हम समधी हो गए।" आलोक जी की आँखों मे खुशी के आँसू छलक आए।  रौनक ने शैलजा की ओर देखा शैलजा ने सिर झुका लिया मानो एक दूसरे से कह रहे हो "तुम सा गर हो साथी" ।
                

Wednesday 24 April 2013

एकाकी

 

कौशल्या जी को गुजरे अभी दस दिन भी न हुए थे कि उनके तीनों बच्चों मे उनकी चीजों को लेकर झगड़ा आरंभ हो गया। जैसा कि अधिकतर घरों मे होता है कि घर के स्वामी या स्वामिनी का महाप्रयाण हुआ नहीं कि संपत्ति  का झगडा शुरू। सो यहाँ भी कुछ नया न हो रहा था।
    बड़ी  बहू सबकी चाय लेकर आई और तमकते हुए बोली ," सारा जीवन मैंने सेवा की है और आज जब कुछ मिलने की बारी आई तो मंगते पहले इकट्ठा हो गए, पिता जी मै कुछ नहीं जानती आप मुझे अम्मा के मोटे वाले कंगन और पुरानी वाली तोड़ियाँ दे दो, आखिर मेरे भी एक बेटी है कुछ अम्मा की तरफ से आशीर्वाद ही हो जाएगा वैसे मुझे कुछ नहीं चाहिए । अम्मा के पास था ही क्या जो हम  लोगों को मिलेगा। "
  मँझली ने कहा ,”नहीं बाबू जी अम्मा हमे सबसे ज्यादा प्यार करती थी और उन्होने कहा था कि मोटे कंगन वे हमको ही देंगी, आप तो वे कंगन हमको ही देना ।”
छोटी बहू नई थी उस समय कुछ न बोली जमना दास जी ने सोचा,”चलो छोटी ठीक है उसने कुछ नहीं मांगा।“ लेकिन रात को दूध लेकर छोटी आई और धीरे से बोली ,” बाबू जी आप तो जानते ही है कि अम्मा ने हमको मुंह दिखाई मे एक जोड़ी पतली वाली पायल ही दी है और तो मुझे कुछ नहीं दिया मेरे पास केवल वही जेवर है जो मेरी माँ ने दिये है । बाबू जी आप मुझे अम्मा के जेवरो मे से कुछ दे देते तो मेरे पास उनकी निशानी रह जाती।” और छोटी बहू चली गई।
रात मे अकेले लेटे लेटे जमना दास जी सोचने लगे –“क्या यही प्यार और संस्कार दिये है हमने अपने बच्चों को ? जो आज दस दिन ही हुये कोशी को गए और बहुए जेवरों की मांग कर बैठीं , क्या पता कल बेटे भी कुछ मांग बैठे ।“
इसी तरह सोचते हुये वे उठे और धीरे धीरे चलते हुये कौशल्या जी की अलमारी की पल्ले खोल कर खड़े हो गए और उनकी हर चीज को हौले से स्पर्श करने लगे । उनकी साड़ियाँ वैसे ही तह की हुई सजी रखी थी जैसे वो रख गई थीं वैसे ही जेवरों के डिब्बे रखे थे उनके नाम से ली गई जमीन के कागज भी सहेज कर रखे हुए थे , इससे पहले वे ही तो सब धरा उठाया करतीं थीं , कभी जरूरत ही न पड़ी कि वे देखते कि कौशल्या जी कौन सी चीज कहाँ रखती हैं और कितने पैसे कहाँ खर्च करतीं है , किस तरह घर चलाया जाता है उनसे बेहतर कोई न जानता था
बड़ी सुघडता से सभी कामों को निपटा डालतीं थीं , कभी जमना दास जी को पता ही न चला । आज उनके जाने के बाद जीवन मे पहली बार अलमारी खोली और उनकी सभी चीजों को छूते और यादों मे खो जाते । जमना दास जी को उनकी हर वस्तु मे उनके होने का अहसास हो रहा था ।“ ये तोड़ियाँ माँ ने कौशल्या को मुह दिखाई मे दी थीं ,ये कंगन माँ ने बड़े बेटे के आगमन पर कोशी को तोहफा दिया था , ये नवरत्न हार स्वयम उन्होने कोशी को फसल अच्छी होने पर दिया था । ये चूड़ियाँ मँझले के जनम पर , और मोटी वाली जंजीर छोटे के जनम पर दी थीं, ये मोतियों का सेट बड़े चाव से बड़े के ब्याह पर खरीदा था । और भी तमाम जेवर जो धीरे धीरे कर जमा किए थे उनमे से कुछ तो कौशल्या जी ने स्वयम ही बहुओं को दे डाले थे। अब रहे सहे जो जेवर थे वो भी उनको ही मिलने थे, कौन बेटी है जो उसको देना पड़े , मिलेगा तो तो इन लोगों को ही , लेकिन इन सबका मन छोटा हुआ जाता है। जमना दास जी ने सोचा काश ! कोशी तुम अपने जीवन मे ही इन सबको दे जाती तो आज इन लोगो का  ये रूप न देखना पड़ता। और उन्होने मन ही मन निर्णय ले लिया कि जब कोशी की तेरहवों हो जाएगी वे सारा समान और जमीन बराबर बराबर सबमे बाँट देंगे । और उनके विषय मे सोचते सोचते कब सुबह हो गई पता ही न चला । सुबह तड़के जाकर उनकी झपकी लगी थी कि थोड़ी ही देर मे खटपट शुरू हो गई और बाहर से किसी ने आवाज लगाई “बाबू चलो उठो सबेरा हुई गवा ।”   जमना दास जी उठ कर बाहर आए । नित्य कामों को निपटाने के बाद जमना दास जी बरामदे मे आकर बैठ गए और अगले दिन की तैयारियों मे लग गए ताकि तेरहवीं का कार्यक्रम ठीक से निपट जाए और कोई व्यवधान न आए । पीछे से सारी चीजों का बटवारा वो खुद ही कर देंगे । शाम ढलने से पहले ही बहू बेटे इकट्ठा हुए और बोले ,” बाबू जी हमे आपसे कुछ बात करनी है ।“ “हाँ बोलो क्या कहना चाहते हो” जमना दास जी बोले । सब एक दूसरे का मुंह देखने लगे मानो कह रहे हों तुम कहो । अंत मे काफी झिझक के बाद छोटे ने बाबू जी से कहा ,”बाबू जी हम सब चाहते हैं कि आप अभी वसीयत भी बना दें वरना कल का क्या भरोसा आप भी माँ की तरह ....... ।“ ज़ोर से चीख पड़े जमना दास ,” छोटे …………. “ । इसके आगे कुछ न कह पाये वे गला भर आया आँसू छिपाते हुये बोले ,” नामुरादों माँ की चिता की आग तो ठंडी हो जाने देते ।“ इसके आगे वे कुछ न कह पाये उठ कर अपने कमरे की ओर चल दिये ।
 एकदम एकाकी , कोई भी आज उनके साथ न था । किसी को भी उनके एकाकीपन से सरोकार न था बस था तो उनकी और माँ की संपत्ति का