आँगन के चौरे पर दादी खटिया बिछाये आराम से लेटी थीं , किसी भजन की कड़ियाँ गुनगुना रहीं थीं - " काहे न लेत प्रभु मोरी खबरिया , आन बसो नैनन में मोरे साँवरिया ।" छोटी पोती दौड़ती हुई आई और दादी के बगल मे लेट गई, उनका हाथ उठा कर अपने ऊपर रखते हुये बोली-"दादी तुम हमेशा साँवरिया को ही क्यों बुलाती रहती हो क्या वो तुम्हारे दोस्त है ?" उसके इस भोले से प्रश्न को सुनकर वहाँ मौजूद सभी खिलखिला कर हंस दिये और दादी कुछ शर्माते हुए बोली -" चल हट पगली, साँवरिया तो हम किशन कन्हैया को कहते है ।" "दादी आप उनको साँवरिया ही क्यों कहती हैं, माँ तो मोहन कहती है" उसने फिर पूछा । दादी ने समझाया ," अरे मेरी चमकी पुतरिया सुन किशन कन्हैया को ही हम मोहन, मुरलिया वाले, नटवर, नन्द किशोर, श्याम, साँवले, साँवरिया और भी कई नाम है जिन नामों से हम मदन मोहन को बुलाते है। जैसे तुम्हारा नाम तो श्वेता है पर हम सब तुम्हें अलग अलग नामों से बुलाते हैं ये तुम्हारे प्यार के नाम हैं वैसे ही किशन कन्हैया के भी प्यार के ढेरों नाम हैं।" श्वेता आश्वस्त हो गई। वहीं दादी के बगल मे ही लेट कर सो गई । दादी प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराती सोचने लगीं, "कितना अच्छ जीवन है इन नन्हें बच्चों का न इन्हे कोई चिंता न कोई फिकर, बस मस्त स्वच्छंद जीवन होता है ।" वो भी बगल मे लेट कर धीरे से सो गई । कितने सुबीते मे थे दोनों।
Nice story!
ReplyDeletevinnie