अचानक गेट की घंटी बजी , मैंने सोचा इस समय कौन हो सकता है ? कौन इस चिलचिलाती धूप मे घूमने निकला है ? घंटी फिर बजी , मुझे उठकर जाना ही पड़ा । मुझे इस समय गेट के उस पार जो भी था उस पर बड़ा गुस्सा आ रहा था । एक तो जेठ की तपती दोपहर उस पर कूलर के सामने उठना , खल रहा था । गर्मियों मे अक्सर हमारे शहर मे बिजली का संकट बना ही रहता है , बस बिजली तुरंत आयी ही थी कि मैंने सोचा दुबारा चली जाए इससे अच्छा है थोड़ी देर फायदा ही उठा लिया जाय । खैर जो भी था अब झेलना तो था ही ।गेट पर पहुच कर मैंने थोड़ा कडक कर पूछा - कौन है ? बाहर से एक अपरिचित महिला की आवाज आई - "हम है गेट खोलो । " मैंने फिर सवाल किया - "क्यों गेट किसलिए खोले , कौन हो तुम कहाँ से आई हो ?' वह बोली मुसीबत की मारी हैं हम काम ढ़ूढ़ने निकली हैं , बड़ी मेहरबानी होगी गेट खोल दीजिये । मैंने सोचा पता नहीं कौन है और आज कल जमाना भी खराब है जाने किस भेस मे आ जाए शैतान । पहले का जमाना और था जब ये होता था कि न जाने किस भेस मे आ जाये भगवान !
काफी देर सोचा फिर धीरे से गेट थोड़ा खोला देखा एक दुबली पतली कृशकाय महिला खड़ी थी । मुख छवि काफी आकर्षक थी पर खुद ही डरी हुई सी लग रही थी । मैंने सोचा चलो देख लेते है और गेट खोल कर उसे अंदर बुला लिया । और वही पोर्च मे कुर्सी लेकर बैठ गई । क्योंकि अभी भी मन के किसी कोने मे डर पाँव जमाये हुए था । लेकिन वह आई और वही गेट के के बगल मे ही बैठ गई । मैंने पूछा -"ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि तुम्हें इस भरी दुपहरी मे निकलना पड़ा ।"
वह कुछ सकुचती सी बोली - " थोड़ी ही दूरी पर हमार घर है । और घर मा मनई , लरिका , बीटेवा ,सबै है ( पति , लड़के , बेटियाँ ) । पर का बतावन अइस समस्या आन परी है कि आपन घर दुवार छाड़ि कै काम खातिर निखरि आई हन( थोड़ी दूरी पर मेरा घर है घर मे पति ,बच्चे सब है पर क्या बताएं ऐसी समस्या आ पड़ी है कि अपना घर द्वार छोड़ कर कम करने निकल पड़ी हूँ )। " और इस तरह उसने अपनी दुःख कथा सुना डाली । मुझे लगा सच मे मुसीबत कि मारी है काम पर रख ही लेती हूँ वैसे भी कुछ दिनों बाद देवर की शादी है , मुझे मदद मिल जाएगी और इसकी मदद हो जाएगी । कुछ पैसे ही मिल जाएंगे । मैंने उससे नाम पूछा तो उसने अपना नाम सुमित्रा बताया ।
मैंने कहा ठीक है घर मेँ मै भी बात कर लूँ । तुम कल से आना । वह हाँ कह कर चली गई । इसके बाद वह काम पर आने लगी । उसका और हमारा दोनों का काम चलने लगा । उसके बच्चे फिर से स्कूल जाने लगे । उसके घर मे फिर से चूल्हा जलने लगा । पर उसकी किस्मत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं थी , उसका पति शराबी था सारी कमाई छीन कर उड़ा देता , यही लत उसके बड़े बेटे को भी लग गई । अब ये बहुत ज्यादा होने लगा था । घर मे दोनों पीकर तहलका मचाते और आए दिन सुमित्रा को पीटते । सुमित्रा के लिए सहन करना बहुत मुश्किल हो गया था । वह अक्सर अपनी कथा मुझे सुनाती । मैंने उसे अपनी लड़ाई खुद ही लड़ने सलाह दी। उसने मन ही मन एक निर्णय लिया । उसने अपने सभी बच्चों को मायके छोड़ आई । अब वह घर मे अकेली थी । उसने ठान लिया था कि अब आर पार की लड़ाई लड्नी है । एक कमरे मे पति को बंद कर दिया और दूसरे कमरे मे बेटे को बंद किया । बाहर से ताला लगा कर काम पर निकल जाती न खुद खाती न पति और लड़के को देती । सिर्फ पानी अंदर रख देती ताकि पानी की कमी न रहे , शौच इत्यादि के लिए वह एक एक कर दोनों बाहर निकालती और वापस बंद कर देती और जब वे गाली गलौज करते उन्हे पानी भी न देती । भूख प्यास ने दोनों का दिमाग ठीक कर दिया । वे बार बार माफी मांगते । परंतु सुमित्रा अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुई , पूरा महिना ऐसे ही व्यतीत हो गया अब तक दोनों बुरी तरह टूट चुके थे । धीरे धीरे वह उन दोनों को बाहर निकालने लगी , पहले एक घंटा फिर दो इसी तरह कई दिनो के अथक प्रयास से उसकी जीत हुई । उसका पति और पुत्र दोनों ही सही रह पर आ चुके थे । वह मायके जाकर अपने सभी बच्चों को वापस ले आई , पति को भी काम पर रखवा दिया । और बेटा भी आठवीं क्लास मे अच्छे नंबरों से पास हुआ वह अपनी लड़ाई जीत गई थी ।
काफी देर सोचा फिर धीरे से गेट थोड़ा खोला देखा एक दुबली पतली कृशकाय महिला खड़ी थी । मुख छवि काफी आकर्षक थी पर खुद ही डरी हुई सी लग रही थी । मैंने सोचा चलो देख लेते है और गेट खोल कर उसे अंदर बुला लिया । और वही पोर्च मे कुर्सी लेकर बैठ गई । क्योंकि अभी भी मन के किसी कोने मे डर पाँव जमाये हुए था । लेकिन वह आई और वही गेट के के बगल मे ही बैठ गई । मैंने पूछा -"ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी कि तुम्हें इस भरी दुपहरी मे निकलना पड़ा ।"
वह कुछ सकुचती सी बोली - " थोड़ी ही दूरी पर हमार घर है । और घर मा मनई , लरिका , बीटेवा ,सबै है ( पति , लड़के , बेटियाँ ) । पर का बतावन अइस समस्या आन परी है कि आपन घर दुवार छाड़ि कै काम खातिर निखरि आई हन( थोड़ी दूरी पर मेरा घर है घर मे पति ,बच्चे सब है पर क्या बताएं ऐसी समस्या आ पड़ी है कि अपना घर द्वार छोड़ कर कम करने निकल पड़ी हूँ )। " और इस तरह उसने अपनी दुःख कथा सुना डाली । मुझे लगा सच मे मुसीबत कि मारी है काम पर रख ही लेती हूँ वैसे भी कुछ दिनों बाद देवर की शादी है , मुझे मदद मिल जाएगी और इसकी मदद हो जाएगी । कुछ पैसे ही मिल जाएंगे । मैंने उससे नाम पूछा तो उसने अपना नाम सुमित्रा बताया ।
मैंने कहा ठीक है घर मेँ मै भी बात कर लूँ । तुम कल से आना । वह हाँ कह कर चली गई । इसके बाद वह काम पर आने लगी । उसका और हमारा दोनों का काम चलने लगा । उसके बच्चे फिर से स्कूल जाने लगे । उसके घर मे फिर से चूल्हा जलने लगा । पर उसकी किस्मत कुछ ज्यादा अच्छी नहीं थी , उसका पति शराबी था सारी कमाई छीन कर उड़ा देता , यही लत उसके बड़े बेटे को भी लग गई । अब ये बहुत ज्यादा होने लगा था । घर मे दोनों पीकर तहलका मचाते और आए दिन सुमित्रा को पीटते । सुमित्रा के लिए सहन करना बहुत मुश्किल हो गया था । वह अक्सर अपनी कथा मुझे सुनाती । मैंने उसे अपनी लड़ाई खुद ही लड़ने सलाह दी। उसने मन ही मन एक निर्णय लिया । उसने अपने सभी बच्चों को मायके छोड़ आई । अब वह घर मे अकेली थी । उसने ठान लिया था कि अब आर पार की लड़ाई लड्नी है । एक कमरे मे पति को बंद कर दिया और दूसरे कमरे मे बेटे को बंद किया । बाहर से ताला लगा कर काम पर निकल जाती न खुद खाती न पति और लड़के को देती । सिर्फ पानी अंदर रख देती ताकि पानी की कमी न रहे , शौच इत्यादि के लिए वह एक एक कर दोनों बाहर निकालती और वापस बंद कर देती और जब वे गाली गलौज करते उन्हे पानी भी न देती । भूख प्यास ने दोनों का दिमाग ठीक कर दिया । वे बार बार माफी मांगते । परंतु सुमित्रा अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुई , पूरा महिना ऐसे ही व्यतीत हो गया अब तक दोनों बुरी तरह टूट चुके थे । धीरे धीरे वह उन दोनों को बाहर निकालने लगी , पहले एक घंटा फिर दो इसी तरह कई दिनो के अथक प्रयास से उसकी जीत हुई । उसका पति और पुत्र दोनों ही सही रह पर आ चुके थे । वह मायके जाकर अपने सभी बच्चों को वापस ले आई , पति को भी काम पर रखवा दिया । और बेटा भी आठवीं क्लास मे अच्छे नंबरों से पास हुआ वह अपनी लड़ाई जीत गई थी ।
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