Sunday, 2 December 2012

" प्रतिशोध "

  ठंडी हवाओं के साथ हल्की बूँदा बाँदी  भी हो रही थी । मौसम बड़ा खुशगवार हो गया था । यूनिवर्सिटी मे छात्रों और छात्राओं का जमघट जगह जगह लगा हुआ था । आज सभी के लिए बहुत बड़ा दिन था । आज परास्नातक के विद्यार्थियों का परीक्षा परिणाम आने वाला था । अपूर्वा बड़ी बेचैनी से अपने परिणाम का इन्तजार कर रही थी , क्योंकि इसके परिणाम से उसका आगे का भविष्य जुड़ा हुआ था । आगे वह एम  बी ए  करना चाहती थी क्योंकि यह उसके बड़े भाई प्रतीक की इच्छा थी । वह अपनी बहन को ऊंचाइयों पर देखना चाहता था । हालांकि उसके चार भाई थे , पर  प्रतीक सबसे बड़ा था वह इंडियन आर्मी मे कैप्टन था , और कारगिल युद्ध के दौरान शहीद हो गया था । उसकी ही इच्छा पूरी करना अब अपूर्वा का जुनून बन गया था ।  बाकी तीनों भी अपूर्वा से बड़े ही थे और अपने बड़े भैया की तरह ही अपूर्वा पर जान छिड़कते थे । उन्होने भैया की इच्छा को पूरा करना अपना मकसद बना लिया था । उसकी आँख जिधर घूम जाती वो चीज उसकी हो जाती ।
  अपूर्वा बला की खूबसूरत थी , काली लंबी घनी केश राशि , हिरनी के जैसी चंचल आंखे , मोतियों के जैसे सफ़ेद दांत , गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ , दूधिया सफ़ेद रंग , छरहरी काया ,  किसी को भी दीवाना बनाने के लिए काफी थी । जब भी घर से बाहर निकलती तो मम्मी पापा डरते ही रहते , अपने लड़कों के गुस्से से भी वे भली भांति परिचित थे ।

  परीक्षा परिणाम जानने की उत्सुकता मे वह घर से पैदल ही यूनिवर्सिटी के लिए निकल पड़ी । किसी तरह यूनिवर्सिटी पहुँचने पर पता चला कि परिणाम घोषित हो चुका है , उसके पैरों से जैसे जान ही निकल गई । खींचते हुये कदमों से पहुंची । लिस्ट अपना नाम  सबसे ऊपर देख उछल पड़ी । खुशी के मारे उसके आँसू निकल पड़े । उसने अपने भैया का सपना साकार कर दिखाया था । वह तकरीबन दौड़ती हुई सी अपने घर चल पड़ी , वह जल्दी से घर पहुँच कर मम्मी पापा भैया सबको खुशखबर दे देना चाहती थी , लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था , उसके कालेज का एक  रईस बाप का बिगड़ा बेटा अमित जो उसी क्लास मे पढ़ता था उसकी जीत को बर्दाश्त नहीं कर पाया था , उसे अपूर्वा का पूरे कालेज मे प्रथम आना नागवार गुजरा । वो  उसके रास्ते मे आ गया और  उसकी ज़िंदगी पूरी तरह बरबाद कर गया । अपूर्वा विक्षिप्त सी अवस्था मे घर पहूँची , माँ उसको देखते ही समझ गयी कि कुछ जरूर हुआ है , अलग ले जाकर पूछा क्या हुआ ? उसने रोते रोते सारी कहानी सुना दी । माँ ने सिर पीट लिया ," जिसका डर था वही हुआ । "कितने भी रईस बाप का बेटा था वह! अपूर्वा के पिता भी नामी वकील थे , कानून के आगे कमजोर रहा और मुकदमे का नतीजा अपूर्वा के हक़ मे रहा ।  पिता ने उसे सजा करवा दी ।उसे आठ साल कठिन कारावास की सजा मिली । लेकिन ये अपूर्वा के जख्मों के लिए कम था । उसने ठानी कि उस गुंडे को को वह अपनी अदालत मे फैसला सुनाएगी , अभी उसका प्रतिशोध पूरा नहीं हुआ था । उसने अपनी पढाई आगे बढ़ाने का निश्चय किया । पिता ने और भाइयों ने उसका साथ दिया पर माँ थोड़ा खिलाफ रही । लेकिन बहुमत के आगे घुटने टेक दिये । अब उन्हे उसकी शादी की चिंता सताने लगी । समय पर शादी कर वे अपने कर्तव्य की पूर्ति करना चाहती थी । कौन करेगा इससे शादी का गम भी उन्हे भीतर ही भीतर साल रहा था । आखिर माँ जो थी , बेटी का कष्ट कैसे देख पाती । कई बार उससे कहा बेटा -" हमारे रहते शादी कर लेती तो अच्छा था । उसने बहाने बना कर टाल दिया । जिस दिन अमित जेल से रिहा हुआ उस दिन वह उससे मिलने पहुंची और उसे शादी के लिए मना लिया । अमित को तो मानो अंधे के हांथ बटेर लगी थी , तुरंत राजी हो गया । बस दोनों ने कोर्ट मे जाकर शादी कर ली । अपूर्वा के माता पिता और भाई बहुत नाराज हुए , उन्होने उसे आशीर्वाद भी नहीं  दिया । वह चल दी अमित के साथ उसके घर ।
  
अपूर्वा ने अपना बदला लेना आरंभ कर दिया , वह न तो अमित को अपने नजदीक आने देती न उसका कोई काम करती यहाँ तक कि घर वालों से झगड़ा ही करती रहती । धीरे धीरे अमित के घर वालों ने अमित से किनारा कर लिया और उसको अलग जाकर रहने की सलाह दी । अपूर्वा को मन मांगी मुराद मिल गई ।  दूसरे घर मे जाते ही उसने अमित को तंग करना शुरू कर दिया । वह अपूर्वा को धम्की देता -"तेरे लिए घर छोड़ कर आया हूँ , तुझे भी छोड़ कर चला जाऊंगा । " अपूर्वा कहती-" जा करके देख ले ,सारे शहर मे तेरी इतनी बदनामी हुई है कि कोई तुझे अपनी लड़की देना तो दूर देखने भी नहीं देगा ।" अमित ने प्रयास किया कि चलो दूसरी शादी कर ही लेते है । लेकिन हुआ वही जो अपूर्वा कह रही थी । अमित अब अपूर्वा को ही मनाने मे लगा रहता । पर नाकाम रहता । कोई काम न होने के के कारण उसकी मानसिक स्थिति बिगड़ने लगी , वह कभी अपूर्वा के पैर पकड़ता , कभी रोने लगता , कभी ज़ोर ज़ोर से हंसने लगता , कभी बाल पकड़ कर नोचता । ऐसी हरकते करते देख अपूर्वा को बड़ी शांति मिलती उसका प्रतिशोध पूरा हो गया था ।

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