Tuesday 4 December 2012

विडिम्बना


आज रूपाली  का मन बहुत अधिक उदास था । वह ये सोच नहीं पा रही थी कि आखिर ये  दुनिया कैसी है , क्यों लोग एक दूसरे को चैन से जीने नहीं देते ? क्यों इतनी नफरत अपने दिलों मे पाल कर रखते है ? कहाँ से आई ये नफरत ? ईश्वर ने तो सिर्फ प्यार ही बनाया था , फिर ये नफरत , ईर्ष्या , द्वेष ये सब कहाँ से आया ?

बहुत अधिक विचलित होने पर उसने खुद को काम में उलझाने  की कोशिश की , परंतु नाकाम रही । टी वी देखने मे मन को लगाना चाहा उसकी ये कोशिश भी असफल रही । उसके मन का तनाव किसी भी तरह कम नहीं हो रहा था ।

उसको याद आने लगे बचपन के वो सुहाने दिन जब वह छोटी थी
 और मम्मी ,पापा ,भैया के साथ खुशी से ज़िंदगी काट रही थी । इकलौती बेटी होने कारण सबकी दुलारी थी । चाचा , दादी , भैया , मम्मी पापा सब उसकी हर ख्वाहिश को पूरा करते नहीं थकते । हालांकि मम्मी अक्सर कहती कि इतना लाड़ प्यार जो हम अपनी बेटी को दे रहे है क्या उसे ससुराल मे भी वैसा ही मिलेगा ? पापा झिड़क देते - छोड़ो भी आज के युग मे जब जमाना कहाँ से कहाँ तरक्की कर रहा है तुम वहीं अटकी पड़ी हो । हम अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर मजबूत बना देंगे कि लोग लाड प्यार तो दूर की बात है सर आँखों पर बैठा कर रखेंगे । परंतु माँ का मन यह मानने को तैयार नही था ।खैर जो भी होगा देखा जायेगा सच मे अभी से क्या चिंता करना , और उन विचारों को झटक दिया जो उन्हे परेशान कर रहे थे । उन्होने रूपाली को बेटे की तरह ही पढ़ाया । पढ़ने मे बहुत होशियार थी रूपाली  इसलिए वह आइ ए एस की तैयारी करने लगी । उसका सिलेक्शन हो गया और वह जिला अधिकारी बनकर बिलासपुर चली गई । बड़ी तन्मयता और लगन से वह अपना पदभार संभाल रही थी । इधर उसके माता पिता ने उसके लिए घर वर की तलाश शुरू कर दी ।
  इकलौती बेटी और जिलाधिकारी के पिता जहां भी जाते बेटी के बराबरी का जीवन साथी ढूंढते । कहीं कुछ मिलता कहीं कुछ कमी रह जाती, बात बनते बनते रह जाती । पिता रोज थक हर घर लौटते , रूपाली के भैया जो विदेश मे नौकरी कर रहे थे उन्हे एक लड़का मिला नाम था प्रशांत । उनके साथ ही मल्टीनेशनल कंपनी मे डी जी एम के पद पर कार्यरत था , उससे उन्होने अपनी बहन की बात चलाई । प्रशांत भी अपने घर मे इकलौता बेटा था ऊपर से विदेश मे नौकरी करता था । माँ बाप के लिए ब्लैंक चेक़ था ।  ये बात  रूपाली के भइया को पता नहीं थी । वह यही सोच रहे थे कि पढ़ा लिखा लड़का है खुले विचारों वाला है, कोई प्रश्न पूछ कर वह उसका अपमान नहीं करना चाहते थे । इधर प्रशांत के माता पिता भी सोच रहे थे कि रइस खानदान की इकलौती बेटी है तिस पर जिलाधिकारी । दोनों हाथ मे लड्डू ही लड्डू । इस भावना से अंजान रूपाली के घरवालों ने उसका ब्याह तय कर दिया । धीरे -धीरे सब तैयारियों के बीच वह दिन भी आ गया । जब रूपाली दुल्हन बनी । तमाम रीति रिवाजों के बीच शादी सम्पन्न हो गयी । रूपाली के घर वालों ने कोई कसर नहीं रखी , बारात खुशी खुशी विदा हो गई । सब कुछ ठीक तरह से निपट गया । ससुराल मे रुपाली ने भी समंजस्य बैठा लिया । 
 सभी ने सोचा सब कुछ ठीक थक चल रहा है , लेकिन यहीं गलत हो गए । प्रशांत सचमुच अच्छा लड़का था लेकिन उसके माँ बाप लालची थे । उनका मुंह खुला तो बंद होने का नाम ही नहीं लिया , पढ़ा लिखा समझदार बेटा भी उन्हे समझा पाने मे नाकाम रहा ।  बेटे व बहू की छुट्टियाँ भी खत्म हो गईं । सब अपने काम पर वापस चले गए । रूपाली अपनी छुट्टियों मे अपनी ससुराल आ जाती और सास ससुर को खुश रखने का भरसक प्रयास करती लेकिन वह नाकाम रहती । ऊपर से तानों का शोर और उसका जीना मुश्किल किए था । वह जल्दी से जल्दी वापस चली जाना चाहती । एक वर्ष के बाद प्रशांत फिर वापस इंडिया आया कि इस बार वह रूपाली को भी साथ ले जाएगा लेकिन उसकी दलीलों ने प्रशांत का मुंह ही बंद कर दिया । उसने अपने सास ससुर के साथ रह कर उनकी सेवा करना ही चुना । प्रशांत फिर वापस चला गया । इस बीच रूपाली का तबादला भी गाजीपुर शहर मे हुआ जहां उसकी ससुराल थी । उसने सोचा अब घर पर थोड़ा ज्यादा समय दे पाऊँगी , शायद सास ससुर को खुश रख पाऊँगी । और दूसरी बात ये भी थी कि वह अब माँ बनने वाली थी । लेकिन उसकी मुश्किलें अब ज्यादा बढ़ गईं थीं । कुछ समय पश्चात उसने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया , उसे  दो माह का प्रसूति अवकाश मिला , इस बीच सास ने उसकी देखभाल करना तो दूर की बात ,ताने सुना -सुना कर कान पका दिये ।  खुद तो खाली हाथ आ गई , बेटी और पैदा करके रख दी,  सारा जीवन कमाएगा मेरा बेटा ,  एक ये लड़की सब खाली कर जाएगी , बेटियाँ पैदा ही इसलिए होती है और न जाने क्या क्या । उस नन्ही परी की मधुर आवाज,  मोहक  मुख छवि कुछ भी उन्हे लुभा नहीं पाया । आज भी ये विडिंबना ही है कि बेटियाँ वह स्थान नहीं पा सकी हैं जिनकी वे हकदार है , चाहे वो कितनी भी पढ़ लिख जाएँ , कितने ही ऊंचे ओहदे पर पहुँच जाएँ  ...........
 
सोचते सोचते उसकी आँख कब लग गई उसे पता ही नहीं चला । जब आँख खुली तो प्रशांत को सामने पाया । उसने अब तक निर्णय ले लिया था कि अब वह अपने पति के साथ चली जाएगी बहुत सेवा कर ली पर वह अब अपने परिवार के लिए जिएगी ।

1 comment:

  1. आपके विचार बहुमूल्य है जो मेरे लेखन को और अधिक मजबूती प्रदान करेंगे ।

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