Sunday, 9 December 2012

डाक्टर साहिबा

               
मै जब भी उस रास्ते से निकलती डाक्टर साहिबा को अपनी क्लीनिक मे बैठा हुआ पाती । वह अपने कर्तव्य की धनी महिला थी, उनका मानना था कि डाक्टर का प्रोफेशन होता ही जनता की सेवा के लिए है और हमेशा अपने प्रोफेशन के साथ ईमानदार रहना चाहिए । जयंती नटराजन यही नाम था डाक्टर साहिबा का , बड़ी ही सौम्य महिला थी , मुझे उनका व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक लगता । लंबा कद , छरहरा शरीर ,सांवला रंग , लंबे बाल , तीखे नयन नक्श , बड़ी ही लुभावनी लगती थी । मै उधर से निकलते समय उनसे जरूर मिलती । उनसे मिलकर बड़ा अच्छा लगता , उनकी बातों से मै मंत्र मुग्ध हो जाती । वे केरला की रहने वाली थी , हिन्दी टूटी फूटी ही बोल पाती , मलयाली भाषा उनकी मातृ भाषा थी ।  इसलिए मलयालम और इंगलिश भाषाओं पर पूरा कमांड था । मै जब उनके पास बैठती तो वे हमेशा हिन्दी सीखने की इच्छा जाहिर करती ,और मै उन्हे हिन्दी सिखाती , हम दोनों कई घंटों हिन्दी का अभ्यास करते ।
बातों ही बातों मे मुझे पता चला कि उन्होने प्रेम विवाह किया है , उनके पति डाक्टर कंवल जीत भटिंडा के रहने वाले थे दोनों मुंबई के मेडिकल कालेज मे साथ ही साथ पढ़ते थे , पढ़ाई खत्म होने के बाद दोनों ने अपने अपने घर वालों की सहमति से विवाह कर लिया और जयंती नटराजन अपने पति के घर आ गई । पति के घर मे बड़ी बीजी ( उनकी दादी ) का शासन चलता था । उनको साँवली सलोनी जयंती पसंद नहीं आई , उन्होने पोते से कहा – पुत्तर ए की लै के आ गया , तू छड्ड इस नू ,मै त्वाड़े वास्ते सोंडी कुड़ी लै के आवंगी । सोंडी पंजाबी कुड़ी । बात आई गई हो गई ।
जयंती बड़ी लगन से सेवा करती , खासकर बड़ी बीजी की । बड़ी बीजी उसकी सेवा से बड़ी खुश हुई । सबसे कहती नहीं थकती कि – “बड़ी ही सुघड़ है हमारी जयंती ।“ उन्होने एक क्लीनिक खुलवा दिया कि डाक्टर बहू है घर मे कब तक बैठेगी । तब से वह क्लीनिक पर बैठने लगी थी और अपने इलाज से और मधुर व्यवहार से सबका दिल जीत लेती । तीन चार साल बीत गए पर उन्हे कोई संतान नहीं हुई , दबी जुबान से लोगों ने पूछना शुरू कर दिया – “ क्या बात है बहू कोई प्रिकाशन ले रही है क्या ?” अब घर के लोगों को भी लगा कि हाँ बात तो सही है । समय रहते हो जाना चाहिए । घर वालों ने कंवल जीत से कहा कि भाई अब तो खुश खबर मिलनी ही चाहिए । कंवल जीत हंस कर टाल देते । जयंती ने सोचा सबका मन रख ले , कंवलजीत से कहा कि हमे अब बच्चे के लिए प्लान कर लेना चाहिए । पर डाक्टर साहिबा की अपनी किस्मत अच्छी नहीं थी ,काफी प्रयास के बाद भी जब उन्हे संतान सुख नहीं मिला तो उन्होने बच्चा गोद लेना चाहा, थोड़े से विरोध के बाद सहमति मिल गई । डाक्टर साहिबा ने एक प्यारी सी बच्ची को गोद लिया । सास नन्द ने कहा लेना ही था तो एक बेटा लिया होता । डाक्टर साहिबा ने उन्हे समझाया बेटी को हम बेटे की तरह पाल सकते है और बेटी का अपना अलग ही सुख होता है कहने की बात है कि बेटा घर के नाम को आगे बढ़ता है लेकिन बिना बेटी कैसे संभव हो सकता है ।           
बेटा हो या बेटी दोनों का अपना सुख होता है । मुझे ये बच्ची बड़ी प्यारी लगी इसलिए मै ले आई । बेटी बड़ी ही मोहिल थी तो बडी बीजी ने उसका नाम मोहिनी रखा । मोहिनी बड़े थोड़े ही समय मे सबकी दुलारी बन गई । घर वालों का सारा समय मोहिनी के साथ कब बीत जाता पता ही न चलता ।
  जयंती का क्लीनिक जिस जगह पर था वहीं पीछे एक छोटा सा गाँव था । वहाँ सुविधाओं के नाम पर एक पुराना जर्जर हो चुका अस्पताल , एक विद्यालय जिसको किसी ने अपने रहने का स्थान बना लिया था , दो तीन कुएं जिनमे किसी मे पानी था किसी मे नहीं । काफी खस्ताहाल गाँव था कोई मुखिया नहीं और सभी मुखिया थे । जयंती जब उस गाँव मे गई , उसे वहाँ कि दयनीय स्थिति देख कष्ट हुआ । उसने मन मे ठान लिया कि इस गाँव के लिए कुछ करना है , पहले उसने वहाँ शिविर लगाया और मुफ्त सबका परीक्षण किया , जिसको जिस इलाज की आवश्यकता थी उसे वह प्रदान की । बच्चों की पढ़ाई लिखाई सुचारु रूप से चल सके इसके लिए विद्यालय ठीक करवाया , काफी दौड़ भाग कर वहाँ अस्पताल , स्कूल , हैंडपंप इत्यादि उपलब्ध कराये । डाक्टर साहिबा उस गाँव के लोगों के लिए किसी फरिश्ते से कम नहीं थी । जो डाक्टर साहिबा कहती वो उनके लिए ईश्वर का हुक्म होता , और क्यों न होता वही तो थी जिसने उनका जीवन ही बदल दिया था ।   

3 comments:

  1. kya baat bhaabhi .. good and inspiring story .

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  2. thankyou and welcome to my blog "kahaniyan".

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  3. you may also visit my other blogs as you know .

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